रैदास के पद ~ सप्रसंग व्याख्या (Ch. 1~ WBBSE Madhyamik Questions and Answers )
रैदास के हर पद की व्याख्या ( Class 10 Summary and Question Answer ) प्रभु जी तुम चंदन हम पानी । जाकी अंग-अंग बास समानी ॥ प्रभु जी तुम घन बन हम मोरा । जैसे चितवत चंद चकोरा ॥ प्रभु जी तुम दीपक हम बाती । जाकी जोति बरै दिन राती ॥ प्रभु जी तुम मोती हम धागा । जैसे सोनहिं मिलत सोहागा ॥ प्रभु जी तुम स्वामी हम दासा । ऐसी भक्ति करै 'रैदासा' ।। प्रसंग प्रस्तुत पद में कवि ने ईश्वर एवं जीव के अन्यया संबंधों की व्याख्या की है कवि के अनुसार जिव ईश्वर का ही अंश है और दोनों के बीच मधुर संबंध होना चाहिए । व्याख्या भक्त कवि रैदास जी ने इस पद में यह बताया है की हे भगवान ! तुम में और मुझ में वही संबंध स्थापित हो चुका है जो चंदन और पानी में होता है, जैसे चंदन के संपर्क में रहने से पानी में उसकी सुगंध फैल जाती है , उसी प्रकार मेरे तन मन में तुम्हारे प्रेम की सुगंध व्याप्त हो गई है । मैं पानी हूं , तुम चंदन हो । प्रभु जी तुम आकाश में छाए काले बादलों के समान हो, मैं जंगल में नाचने वाला मोर हूं जैसे बादलों को बरसते देखकर मोर खुशी से नाचने लगते हैं उसी भांति मैं आपके दर्शन पाकर खुशी से भाव मुग्ध...