(आत्मत्राण - रवींद्रनाथ टैगोर) Atmatran Class 10 Summary

( आत्मत्राण - रवींद्रनाथ टैगोर )  की पाठ व्याख्या



(  Atmatran Class 10 Summary and Question Answer )





रवींद्रनाथ ठाकुर के जीवन तथा साहित्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए ।


रवींद्रनाथ ठाकुर का जन्म 6 मई, सन 1861 को बंगाल के एक संपन्न परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम देवेंद्र नाथ ठाकुर था । उनकी शिक्षा दीक्षा घर में ही संपन्न हुई उन्होंने छोटी आयु में ही स्वाध्याय से कई विषयों का ज्ञान अर्जित कर लिया था । वे बैरिस्टरी करने के लिए लंदन भेजे गए । लेकिन यह विषय उनकी रुचि के अनुरूप नहीं था इसीलिए वह बैरिस्टर की परीक्षा दिए बिना ही स्वदेश लौट आए। रविंद्र नाथ ठाकुर बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे वे साहित्य, संगीत , चित्रकला तथा भावनृत्य में पूर्णता पारंगत थे। आज संगीत के क्षेत्र में भी रविंद्र संगीत नाम से गान व नृत्य की अलग धारा प्रवाहित है । उन्होंने शांति निकेतन नाम की एक शैक्षिक व सांस्कृतिक संस्था की स्थापना की जज विश्व भारती विश्वविद्यालय के नाम से प्रख्यात है गीतांजलि नामक कृति के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया उनकी मृत्यु सन 1941 में हुई ।


उनकी रचनाएं :  गीतांजलि, नैवेद्य, पूरबी, बालका, क्षणिका, चित्र और संध्यागीत, काबुलीवाला । 

कविता की अतिरिक्त इन्होंने "गोरा", घरे बाहरे, नामक उपन्यास भी लिखें ।

उनके निबंधों का संग्रह "रविंद्र के निबंध" नाम से प्रकाशित है।


काव्यगत विशेषताएं :

रवींद्रनाथ की अधिकांश कविताएं धर्म, आध्यात्म, प्रकृति प्रेम, और मानवता पर आधारित है । उनके काव्य में प्रभु के प्रति आस्था का स्वर अवश्य सुनाई पड़ता है । उनकी आत्मत्राण कविता भी प्रभु के चरणों में समर्पित है वे प्रभु से अपने लिए कोई सुविधा या रियायत नहीं चाहते हैं वह हर हाल में उसकी प्रति आस्था चाहते हैं ।


आत्मत्राण

विपदाओं से मुझे बचाओ, यह मेरी प्रार्थना नहीं
केवल इतना हो (करुणामय)
कभी न विपदा में पाऊं भय

दुःख-ताप से व्यथित चित्त को न दो सांत्वना नहीं सही
पर इतना होवे (करुणामय)
दुख को मैं कर सकूं सदा जय


कोई कहीं सहायक न मिले
तो अपना बल पौरुष न हिले
हानि उठानी पड़े जगत् में लाभ अगर वंचना रही
तो भी मन में ना मानूं क्षय
मेरा त्राण करो अनुदिन तुम यह मेरी प्रार्थना नहीं
बस इतना होवे (करुणायम)
तरने की हो शक्ति अनामय

मेरा भार अगर लघु करके न दो सांत्वना नहीं सही
केवल इतना रखना अनुनय
वहन कर सकूं इसको निर्भय
नत शिर होकर सुख के दिन में
तव मुख पहचानूं छिन छिन में

दुःख-रात्रि में करे वंचना मेरी जिस दिन निखिल मही
उस दिन ऐसा हो करुणामय,
तुम पर करूं नहीं कुछ संशय



रविंद्र नाथ ठाकुर द्वारा रचित आत्मत्राण नामक कविता का सारांश अपने शब्दों में लिखिए? 


 प्रस्तुत कविता आत्मत्राण कवि गुरु रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा बांग्ला भाषा में रची गई है। इसका अनुवाद हिंदी के महान साहित्यकार तथा टैगोर के प्रिय शिष्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने किया है । द्विवेदी जी ने इस कविता के अनुवाद से स्पष्ट कर दिया है कि अन्य भाषा से अनुवाद की प्रक्रिया में मूल रचना की आत्मा को किस प्रकार बचाए रखा जा सकता है।

 इस कविता में कवि कहता है कि प्रभु में सब कुछ करने की असीम क्षमता है लेकिन वह यह नहीं चाहता है की प्रभु ही उसका सब काम कर दें । कवि कामना करता है कि प्रभु उसकी विपत्तियों व कष्टों को दूर ना करें, बल्कि उसको उन विपत्तियों से संघर्ष करने की क्षमता प्रदान करें और उसे विपत्तियों से निडर बनाएं ।

कवि कहता है कि हे प्रभु ! आप दुःख वकष्टों से पीड़ित मेरे चित को शांत ना करें अपितु उसको कष्ट सहन करने की शक्ति प्रदान करें । 

वह प्रभु से प्रार्थना करता है कि यदि मेरा नुकसान भी हो जाए, तो मैं उसको अपनी क्षति ना मानूं ।

लेकिन यदि मेरे दुःखों का भार बढ़ जाए तो उसको मैं स्वयं वहन कर सकूं इतनी शक्ति अवश्य दे देना।

 साथ ही मुझे इतनी समझ अवश्य देना कि मैं कभी भी आप पर संशय ना करूं।


1

विपदाओं से मुझे बचाओ, यह मेरी प्रार्थना नहीं
केवल इतना हो (करुणामय)
कभी न विपदा में पाऊं भय

प्रसंग

 प्रस्तुत अवतरण में कवि विपदाओं से भयभीत न होने की प्रार्थना करता है ।

व्याख्या

 कवि प्रभु से कहता है- हे प्रभु ! मैं आपसे यह प्रार्थना नहीं करता की आप मुझे संकटों से बचाव मैं केवल इतनी प्रार्थना करता हूं की आप करुणावन है अतः आपकी करुणा पाकर मैं किसी भी संकट से भयभीत न होऊं।

2

दुःख-ताप से व्यथित चित्त को न दो सांत्वना नहीं सही
पर इतना होवे (करुणामय)
दुख को मैं कर सकूं सदा जय

प्रसंग

 प्रस्तुत अवतरण में कवि ईश्वर से प्रार्थना करता है

कि वह उसे विपत्ति में धैर्य प्रदान करें ।

 व्याख्या 

कवि प्रभु से निवेदन करता है

कि- हे प्रभु ! यदि मेरा हृदय दुःख और कष्ट से पीड़ित हो,

तो आप उन दुखों को सहन करने की शक्ति अवश्य देना।

उन पर नियंत्रण करने की ताकत जरूर देना।


3

कोई कहीं सहायक न मिले
तो अपना बल पौरुष न हिले
हानि उठानी पड़े जगत् में लाभ अगर वंचना रही
तो भी मन में ना मानूं क्षय

प्रसंग 

प्रस्तुत अवतरण में कवि ईश्वर से पौरुष प्राप्त करने की कामना करता है।

 व्याख्या 

कवि प्रभु से निवेदन करते हैं कि - हे प्रभु! यदि विपत्ति में मुझे कोई सहायता करने वाला ना मिले तो कोई बात नहीं।  मेरी प्रार्थना है कि मेरा अपना बाल और पराक्रम डामाडोल ना हो । मैं विपत्ति में घबरा ना जाऊं । मेरा अपना बल ही मेरे काम आ जाए यदि लाभ मुझे हर बार धोखा देता रहे और मुझे हनी ही हानि उठानी पड़े तो भी मैं मन में अपना सर्वनाश ना मन बैठूं , मैं निराशा से न भर जाऊं। 

4

मेरा त्राण करो अनुदिन तुम यह मेरी प्रार्थना नहीं
बस इतना होवे (करुणायम)
तरने की हो शक्ति अनामय

प्रसंग 

इन पंक्तियों में कभी प्रार्थना करते हैं कि ईश्वर उसे अनामय तरने की शक्ति प्रदान करें ।

व्याख्या 

कवि प्रभु से निवेदन करता है कि- हे प्रभु ! मैं नहीं चाहता कि तुम प्रतिदिन हर संकट में मेरी रक्षा करो मेरा  यह निवेदन नहीं है। बस मेरा निवेदन यह है कि तुम मुझे हर संकट से उबरने की अविकल शक्ति दो । मैं स्वस्थ मन से संकट से पार उतर सकूं।

5

मेरा भार अगर लघु करके न दो सांत्वना नहीं सही
केवल इतना रखना अनुनय
वहन कर सकूं इसको निर्भय

प्रसंग 

प्रस्तुत अवतरण में कवि ईश्वर  से निर्भय होकर दुःख वहन  करने की शक्ति चाहता है ।

व्याख्या 

कवि कहता है - हे प्रभु! यदि मेरे दुःख में आप मुझे तसल्ली नहीं देते, तो ना दें। मैं मानता हूं कि इससे मेरे जीवन का दुःख भार कम नहीं होगा । मैं उसे दुःख भार को सहन कर लूंगा । परंतु आपसे विनम्र प्रार्थना या है कि आप मुझे इस दुःख को सहन करने की शक्ति दें । कहीं मैं दुःख की इस घड़ी में भयभीत न हो जाऊं इतनी शक्ति अवश्य दें।

6

नत शिर होकर सुख के दिन में
तव मुख पहचानूं छिन छिन में

दुःख-रात्रि में करे वंचना मेरी जिस दिन निखिल मही
उस दिन ऐसा हो करुणामय,
तुम पर करूं नहीं कुछ संशय

प्रसंग

 प्रस्तुत अवतरण मे कवि ईश्वर से प्रार्थना करता है कि वह उसे ऐसी असीम शक्ति प्रदान करें की वह (कवि ) उस पर कभी भी संशय ना करें ।

व्याख्या 

कवि करुणामय प्रभु से निवेदन करता है- हे प्रभु ! मेरी कामना है कि जब मैं सुख में हूं तो भी सर झुका कर हरक्षण आपकी छवि देखूं , हर सुख को आपकी कृपा मानूं । जब मैं दुःख की रात से घिर जाऊं सारे संसार के लोग उस दुःख में मुझे और भी पीड़ा पहुंचाएं, धोखा दें तब भी है करुणामय ईश्वर मुझे इतनी शक्ति दो कि मैं आप पर किसी प्रकार का संदेह न करुं।  मेरे मन में आपके प्रति भक्ति भाव बना रहे ।


( Hindi class 9- Summary and short question's answer )

  1. "विपदाओं से मुझे बचाओ, यह मेरी प्रार्थना नहीं" कवि इस पंक्ति के द्वारा क्या कहना चाहता है? 

अथवा कवि रवींद्रनाथ ईश्वर से सहायता क्यों नहीं लेना चाहते हैं? 

 उत्तर:  कवि परमात्मा से अपने लिए विशेष सुविधा नहीं चाहता वह अन्य लोगों की तरह संसार के दुःखों और कष्टों का अनुभव करना चाहता है, इसलिए वह यह नहीं चाहता कि प्रभु उसे संकट से बचा ले । वह तो बस उन कष्टों को सहन करने की शक्ति चाहता है।


  1. कवि सहायक के नाम मिलने पर क्या प्रार्थना करता है?

उत्तर : कवि प्रार्थना करता है कि यदि विपत्ति के समय उसे कोई सहायक ना मिले तो उसका अपना बल और पौरुष ही उसकी सहायक बन जाए।


  1. "आत्मत्राण" शीर्षक पाठ के अंत में कवि क्या अनुनय करता है?

 उत्तर: कवि अंत में या अनुनय करता है - कि यदि उसे चारों ओर से दुःख घेर ले संसार के लोग भी उसका साथ छोड़ दें , और उसके विरुद्ध हो जाए तो भी उसकी प्रभु पर आस्था बनी रहे । उसके मन में ईश्वर के प्रति संदेह न जन्में।


  1.  " आत्मत्राण " कविता के आधार पर बताइए कि हमारा परमात्मा के प्रति कैसा भाव होना चाहिए?

उत्तर:  आत्मत्राण कविता हमें बताती है कि हमारी परमात्मा के प्रति आस्था निष्कपट, अटल तथा  अटूट होना चाहिए। ना तो हम दुःख में उसके प्रति अनास्था या संशय  आने दे और ना ही सुख में उसे भूल जाएं । हम विकेट से विकेट दुःख में भी परमात्मा के प्रति संदेह न करें।


  1. दुःख आने पर कवि रवींद्रनाथ ठाकुर परमात्मा से क्या निवेदन करते हैं? 

 उत्तर:  कवि दुःख आने पर परमात्मा से दुःख को सहन करने की शक्ति मांगते हैं। वह दुःख से मुक्ति नहीं मांगते बल्कि आत्मबल, पौरुषबल, निर्भयता, विजयशीलता और प्रबल आस्था मांगते हैं । जिसके बल पर वह दुःखों पर विजय पा सकें।


  1.  कवि रवींद्रनाथ ठाकुर सुख के दिन में परमात्मा के प्रति कैसा भाव रखते हैं?

 उत्तर:  कवि सुख के दिनो में परमात्मा के प्रति विनय, कृतज्ञता और आस्था व्यक्त करना चाहते हैं। वह अपने हर सुख में भगवान की कृपा मनाना चाहते हैं। वह हर पल परमात्मा को याद रखना चाहते हैं। तथा अपने अहं कि परिष्कार करना चाहते हैं।


  1. आत्मत्राण कविता की प्रार्थना अन्य प्रार्थना गीतों से अलग कैसे हैं ?

उत्तर: आत्मत्राण कविता की प्रार्थना अन्य प्रार्थना गीतों से अलग इस प्रकार है :

इसमें दुखों से बचने की प्रार्थना नहीं है जबकि अन्य प्रार्थना गीतों में दुखों से बचने की प्रार्थना की जाती है।

 इसमें संकट के समय में प्रभु पर आस्था बनाए रखने की प्रार्थना की गई है यह भी विशेष प्रार्थना है।


  1. आत्मत्राण कविता के आधार पर बताइए कि हमारी परमात्मा से क्या प्रार्थना होनी चाहिए? और क्यों?

उत्तर: हमारी परमात्मा से प्रार्थना होनी चाहिए - हे परमात्मा! मुझे हर दुख को सहने की शक्ति दे दुःख में भी आपके प्रति भक्ति बनाए रखें क्योंकि हमारे दुःख सुख सभी प्रभु की देन है इसलिए उसके द्वारा दिए गए दुःखों को भी स्वीकार करना चाहिए।


  1. आत्मत्राण कविता में चारों ओर से दुःखों से घिरने पर  कवि परमेश्वर में विश्वास करते हुए भी अपने से क्या अपेक्षा करता है?

 उत्तर:कवि चारों ओर दुःखों से घिरा हुआ है फिर भी उसका परमेश्वर पर अटल विश्वास है ऐसे में वह अपने से अपेक्षा करता है कि उसका प्रभु पर विश्वास बना रहे और हर संकट को हंसते-हंसते सहन कर ले। 


  1. "तुम पर करूं ना कुछ संशय" पंक्ति के माध्यम से कभी क्या प्रार्थना करते हैं?

 उत्तर:कवि करुणामय प्रभु से निवेदन करते है - हे प्रभु! जब मैं दुख की रात से घिर जाऊं, सारे संसार के लोग उस दुःख में मुझे और भी पीड़ा पहुंचाएं, धोखा दे तब भी, हे करुणामय ईश्वर ! मुझे इतनी शक्ति दो कि मैं आप पर किसी प्रकार का संदेह न करूं मेरे मन में आपके प्रति भक्ति भाव बना रहे ।


  1. आत्मत्राण कविता की कवि किससे कभी भी विपदा में क्या नहीं पाना चाहते हैं?

 उत्तर:  कवि ईश्वर से विपदा में कभी भी भय नहीं पाना चाहते हैं ।


  1. आत्मत्राण गीत में कवि ने किस चीज की प्रार्थना की है?

उत्तर:आत्मत्राण गीत में कवि ने ईश्वर से विपदा में भय न पाने की प्रार्थना की है ।


  1. आत्मत्राण शीर्षक कविता मूलतः किस भाषा में रचित है?

उत्तर:बंगाली में ।


  1. आत्मत्राण शीर्षक कविता को बंगाल से अनुवाद किसने किया था?

उत्तर:आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने ।


  1. रविंद्र नाथ ठाकुर को किस कृति के लिए नोबेल पुरस्कार मिला था? 

उत्तर: गीतांजलि के लिए‌।


  1.  रविंद्रनाथ टैगोर का जन्म कब हुआ था?

उत्तर:सन 1861, 6 मई ।


  1. रविंद्रनाथ टैगोर के पिता का क्या नाम था ? 

उत्तर: देवेंद्रनाथ ठाकुर ।


  1. टैगोर की मृत्यु कब हुई थी?

 उत्तर: सन 1961 में ।

 

  1. टैगोर की पुरस्कृत रचना का नाम बताइए ?

उत्तर: गीतांजलि (नोबेल पुरस्कार)


  1.  आत्मत्राण कविता किस प्रकार की कविता है?

 उत्तर: प्रार्थना गीत ।


  1. प्रस्तुत गीत में कवि के किन-किन गुणों का उजागर होता है ?

उत्तर:  विनम्रता, धैर्य, पौरुष, निर्भीकता, आस्था एवं विश्वास आदि गुणों का उजागर होता है।


  1. प्रस्तुत कविता में कवि ने किस चीज की प्रार्थना की है? उत्तर: प्रस्तुत गीत में  कवि ईश्वर से प्रार्थना करता है कि वह उसे कष्ट सहने की शक्ति, आत्मबल, पौरुष, उसकी ईश्वर के प्रति आस्था, निर्भीकता, विनम्रता आदि प्रदान करें ।


  1. जीवन पथ पर किसी साथी के न मिलने पर  कवि क्या प्रार्थना करता है? 

उत्तर: जीवन पथ पर किसी साथी के न मिलने पर कवि रविंद्रनाथ ठाकुर प्रार्थना करते हैं कि- हे प्रभु ! मेरा अपना बाल और पराक्रम डामाडोल ना हो मैं विपत्ति में घबरा ना जाऊं ।










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