कलकत्ता कविता का सारांश - अरुण कमल - Kolkata Kavita Ka Saransh Class 9
कलकत्ता कविता का सारांश -
सप्रसंग व्याख्या(Kolkata Kavita Ka Saransh Class 9)
बार बार सौ बार कोलकाता जाऊंगा
मैं वहां तब से जा रहा हूं जब वह कलकता था
तब से जब वह बायस्कोप के भीतर था
मैं वहां बाबा के कंधे पर बैठकर गया
मैं वहां गालिब की पालकी में सजकर गया
जब मेरे गांव से पहला टोल गया चटकल मजदूरों का
सत्तू की गठरी पीठ पर लादे मैं भी गया महिषदल तक
अब भी याद है मुझे वह सुबह जब मैं हावड़ा मैं उतरा
और चमके हावड़ा पुल के मस्तूल
इतना पास कोलकाता
गंगा में समाया हुआ सागर का अवक्षेप धरती में कंदमूल
मेरे घर से इतनी दूर की रात को झलके वही तारा बना उड़हुल
इतना प्यारा जैसे हाथी गन्ने चूसता कोई दमकल घंटी बजाता दौड़ता
अब भी याद है मुझे वो दिन जब मैं कोलकाता की सड़को पर
खेत खलिहान के पांवों से चला लाठी भर जगह छेकता
एक बार फिर मैं ढूंढता हूं अपनी चाल अपनी गति
दुनिया की समस्त गतियों के मध्य
मेट्रो ट्राम से लेकर हाथ रिक्शे तक सृष्टि के समस्त
छंदों के मध्य अपना छंद ढूंढता
मैं एक बेसहारा पैदल राहगीर वह जगह ढूंढ रहा हूं
जहां से पार कर सकूं यह चौरस्ता
लंदन पेइचिंग न्यू यॉर्क एक बार
कोलकाता बार बार बार बार कोलकाता
कलकत्ता कविता - अरुण कमल
( Hindi class 9- Summary and short question's answer )
कलकत्ता शहर के पुरातन तथा नवीन रूपों से कवि निम्नलिखित प्रकार से आकर्षित है।
• कवि अरूण जी जब कलकत्ता के नए रूप को देखते है तो उन्हें लगता है कि क्या ये वही शहर कलकत्ता है क्योंकि अब यहां अनेक परिवर्तन हो चुके हैं।
• पहले उनके घर में एक बत्ती टिमटिमाती थी अब यह शहर रोशनियों से खचाखच भरा है।
• उस शहर में किसी का हुक्म नहीं चलता था। खोमचे वाले हुआ करते थे। सुबह सुबह स्त्रियां गंगा स्नान को जाया करती थी।
• वे कहते है कि यदि कोई कोतवाल भी दाढ़ी लगाकर आ जाए तो कुत्ते भूंक भूंक कर शहर के बाहर खदेड़ देते थे।
• अब न वह शहर है न ही ये दृश्य हैं।
• कवि कहते है कि नदी सूखी हो या भरी हुई मै यहां आऊंगा।
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