परोकार परियोजना (भूमिका, विभिन्न प्रकार, आवश्यकता, लाभ और प्रभाव, उपसंहार )

भूमिका:
परोपकार एक ऐसा शब्द है जिसका अर्थ शायद ही कोई न जानता हो, यह एक ऐसी भावना है जिसका विकास बचपन से ही किया जाना चाहिए। हम सबने कभी न कभी किसी की मदद जरुर की होगी और उसके बाद हमे बड़ा की गर्व का अनुभव हुआ होगा, बस इसी को परोपकार कहते हैं। परोपकार के कई रूप हैं, चाहे यह आप किसी मनुष्य के लिये करें या किसी जीव के लिये।

परोपकार के विभिन्न प्रकार : 
परोपकार की भावना अनेक रूपों में प्रकट होती हैं. धर्मशालाएं, धर्मार्थ, औषधालय, जलाशयों, पाठशालाओं आदि का निर्माण तथा भोजन, वस्त्र आदि का दान देना –परोपकार के ही विभिन्न रूप हैं. इनके पीछे सर्वजन हित एवं प्राणिमात्र के प्रति प्रेम की भावना निहित हैं।

परोपकार की आवश्यकता:
परोपकारी सामाजिक व्यवहार की आवश्यकता इसलिए है क्योंकि यह हमें अपने समुदाय में साझेदारी और सहानुभूति का भाव बनाए रखने में मदद करता है। जब हम दूसरों की जरूरतों को समझते हैं और उनकी मदद करते हैं, तो समाज में एक मेल और एकजुटता बनी रहती है। यह व्याकुलता और आपसी समर्थन को बढ़ावा देता है, जिससे हम सभी मिलकर अच्छे और सहयोगी तरीके से जी सकते हैं।

परोपकार से लाभ और प्रभाव: 
परोपकार से मानव का व्यक्तित्व विकास होता है. वह परोपकार की भावना के कारण स्व के स्थान पर अन्य (पर) के लिए सोचता है. इसमें आत्मा का विस्तार होता है. भाईचारे की भावना बढ़ती है. विश्व बंधुत्व की भावना का विकास होता है. परोपकार से अलौकिक आनंद मिलता है. किसी को संकट से निकाले, भूखे को भोजन दें तो इसमें सर्वाधिक सुख जी अनुभूति होती हैं. परोपकार को बड़ा पुण्य और परपीडन को पाप माना गया हैं।

उपसंहार :
परोपकारी मानव किसी बदले की भावना अथवा प्राप्ति की आकांक्षा से किसी के हित में रत नहीं होता। वह इंसानियत के नाते दूसरों की भलाई करता है। “सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया “ के पीछे भी परोपकार की भावना ही प्रतिफल है।
 

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