नीड़ का निर्माण फिर-फिर ~ कविवर हरीवंश राय बच्चन ~ सारांश (व्याख्या ) और संदेश (Ch.6 ~ WBBSE Madhyamik Questions and Answers ) Nid ka Nirman Fir Fir
नीड़ का निर्माण फिर-फिर कविता का सारांश (व्याख्या ) और संदेश ( Nid ka Nirman Fir Fir )
कविवर हरीवंश राय बच्चन का जीवन परिचय देते हुए उनकी काव्य कृतियों पर प्रकाश डालिए
उत्तर: हरिवंश राय बच्चन उत्तर छायावादी युग के एक ऐसे कवि हैं जिनकी मधुशाला के मधु ने युवा वर्ग को मदोन्मत कर दिया था । आप आशावादी कवि हैं । आपकी कविताओं में मानवीय भावनाओं की मनोवैज्ञानिक अभिव्यक्ति आपको कुशल कवि बनाती है। आप काव्य की संगीतात्मकता, सरलता एवं मार्मिकता के कवि के रूप में सदैव याद किए जाएंगे।
जीवन परिचय: श्री हरिवंश राय बच्चन का जन्म 27 नवंबर 1907 ई० में प्रतापगढ़ के एक कायस्थ परिवार में हुआ था । आपके पिता का नाम "श्री प्रतापनारायण" था । आपने काशी और इलाहाबाद में शिक्षा प्राप्त कर कैंब्रिज विश्वविद्यालय में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की । आप कई वर्षों तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्रधान अध्यापक रहे। 1955 ई० में आप हिंदी विशेषज्ञ होकर विदेश मंत्रालय में चले गए । 1966 ई० में आपको राष्ट्रपति द्वारा राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया गया। कुछ समय तक आप आकाशवाणी के साहित्यिक कार्यक्रमों से भी जुड़े रहे। आप युवा कल में ही राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय भाग लेने लगे थे। आर्थिक स्थिति ठीक ना होने के कारण आपकी प्रथम पत्नी "श्याम" का अल्पवय में ही असाध्य रोग से निधन हो गया । पत्नी के वियोग ने आपको दुःख से भर दिया । कुछ समय बाद आपने दूसरा विवाह "तेजी" से करके सुखी दांपत्य जीवन में प्रवेश किया। आपके जीवन पर उमर खय्याम का विशेष प्रभाव था। "मधुशाला" रचना इसका जीवंत प्रमाण है।
कर्म क्षेत्र में साहित्य की आराधना करते हुए यह महान विभूति 18 जनवरी 2003 ई० को पंचतत्व में विलीन हो गई।
साहित्यिक अवदान: आप उत्तर छायावाद काल के लोकप्रिय कवि हैं । आपके युग के युवा वर्ग को मधुशाला काव्य कृति आज ढलती उम्र में भी युवा बना जाती है । उमर खय्याम की रूबाईयों पर आधारित इस कृति ने आपको अमर बना दिया। आपने हिंदी को सरस शैली में पहुंचाकर बहुत ही सराहनीय कार्य किया। आप मानवीय भावनाओं के कुशल चीतेरे कवि हैं। सरलता, स्वाभाविकता, संगीतात्मकता और मार्मिकता आपके काव्य की प्रमुख विशेषताएं हैं मूलतः व्यक्तिवादी कवि होते हुए भी सामाजिक जनजीवन का चित्रण भी आपने किया है।
कृतियां:
बच्चन जी की प्रमुख कृतियां निम्नलिखित हैं-
"मधुशाला", 'मधुबाला', 'मधुकलश'- यह तीनों काव्य कृतियां एक के बाद एक प्रकाश में आई इन कृतियों में बच्चन जी के प्यार की कसक है हिंदी में इन्हें हालावाद की रचनाएं कहकर संबोधित किया जाता है।
'सतरंगिणी' एवं 'मिलन यामिनी'- इनमें श्रृंगार- रस के गीतों का संग्रह है जो युवा मन को उल्लास और मधुरता से भर देता है ।
'निशा निमंत्रण' एवं 'एकांत संगीत' कवि की सर्वोच्च कृतियां है इनमें कवि की पीड़ा जाग उठी है।
इसके अतिरिक्त 'आकुल अंतर', 'प्रणय पत्रिका', 'बुद्ध का नाच घर' तथा 'आरती और अंगारे' कवि के अन्य काव्य संग्रह हैं।
नीड का निर्माण फिर फिर नामक पाठ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए ।
उत्तर:
प्रस्तावना - प्रस्तुत कविता में कवि के जीवन का उल्लास और उत्साह छलक रहा है। कविता द्वारा कवि ने जीवन की कठिनाइयों से लड़ने और सब कुछ नष्ट हो जाने पर भी फिर से नया निर्माण करने की प्रेरणा दी है। जिसका सारांश निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत किया जा सकता है ।
आकाश में बवंडर का उठना - कविवर हरिवंश राय बच्चन चिड़िया के माध्यम से जीवन का संदेश देते हुए बताते हैं कि व्यक्तिरूपी चिड़िया को सदैव अपने जीवन रूपी नीड का निर्माण करते रहना चाहिए।
आंधी तूफान में सब कुछ तहस-नहस होना- भयानक आंधी तूफान के आने पर यदि सब ओर विनाश भी मच जाए, व्यक्ति रूपी चिड़िया के घोसले का चाहे तिनका तिनका बिखर जाए, पेड़ जड़ से उखड़ कर चाहे भूमि पर गिर पड़े, मगर चिड़िया को नवनिर्माण की आशा को अपने मन में संजोकर आकाश में ऊंचे और ऊंचे चढ़ते चले जाना है।
प्रलय के बाद फिर सृष्टि होती है- कविवर बच्चन व्यक्ति रूपी चिड़िया को सांत्वना देते हुए कहते हैं कि तुझे इस प्रलयंकारी आंधी तूफान के विनाश को देखकर घबराना नहीं चाहिए और नहीं यह सोचकर निर्माण कार्य से विरत हो जाना चाहिए कि अब सब कुछ नष्ट हो गया है,
इसलिए अब कुछ नहीं हो सकता। वे कहते हैं कि व्यक्ति को यह बात सदैव ध्यान रखना चाहिए कि प्रलय के बाद नई सृष्टि का निर्माण आवश्यक होता है।
नींद के निर्माण फिर फिर कविता में निहित संदेश स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : 'सबरंगिणी' से उद्धृत प्रस्तुत कविता कवि की आशावादी कविता है जिसमें ईश्वर के प्रति आस्था की अभिव्यक्ति हुई है । अपनी पहली पत्नी (श्यामा) की मृत्यु के पश्चात कभी दुख से अच्छन्न हो गया चारों तरफ दुःखों का अंधेरा छा गया, लेकिन प्राची से सूर्य निकाला जिसके प्रकाश ने जीवन के प्रति आस्था जगह दी । आशा रूपी पक्षी ने (द्वितीय पत्नी - तेजी बच्चन) आकर जीने की चाह जगा दी और फिर से नीड के निर्माण की (नई गृहस्थी बसाने की) आकांक्षा मन में जाग उठी ।
प्रस्तुत कविता के माध्यम से कवि कहना चाहता है कि मानव को दुःख में इतना नहीं डूब जाना चाहिए कि फिर उठ ही ना सके । मनुष्य को सदा आशावान होना चाहिए।
नीड का निर्माण फिर फिर शीर्षक कविता के प्रतिपाध को अपने शब्दों में लिखिए ।
उत्तर: कविवर हरिवंश राय बच्चन चिड़िया के माध्यम से व्यक्ति को बताना चाहते हैं कि व्यक्ति रूपी चिड़िया को सदैव अपने जीवन रूपी घोंसले के नव निर्माण में लगे रहना चाहिए । उसे कभी भी अपने जीवन से प्रेम -प्यार को अलग नहीं कर देना चाहिए, बल्कि किन्हीं कारणों और मतभेदों से यदि कटुता पैदा होती भी है तो उसे बार-बार कटुता को मिटाकर स्नेह की स्थापना करनी चाहिए । इस कविता का यही मूल उद्देश्य है।
नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्वान फिर-फिर!
वह उठी आँधी कि नभ में
छा गया सहसा अँधेरा,
धूलि धूसर बादलों ने
भूमि को इस भाँति घेरा,
रात-सा दिन हो गया, फिर
रात आई और काली,
लग रहा था अब न होगा
इस निशा का फिर सवेरा,
रात के उत्पात-भय से
भीत जन-जन, भीत कण-कण
किंतु प्राची से उषा की
मोहिनी मुस्कान फिर-फिर!
नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्वान फिर-फिर!
१.
प्रसंग
इस पंक्ति में कविवर बच्चन चिड़िया के माध्यम से यह बताना चाहते हैं कि जीवन में समस्याएं तो आती रहती है किंतु व्यक्ति को उनसे न घबडाकर निराश नहीं हो जाना चाहिए ।
व्याख्या
कविवर हरिवंश राय बच्चन जी चिड़िया के माध्यम से व्यक्ति को बताना चाहते हैं कि व्यक्ति रूपी चिड़िया को सदैव अपने जीवन रूपी घोंसले के नवनिर्माण में लगे रहना चाहिए उसे कभी भी अपने जीवन से प्रेम-प्यार को अलग नहीं कर देना चाहिए, बल्कि किन्हीं कारणों और मतभेदों से यदि कटुता पैदा होती है तो उसे बार-बार कटुता को मिटाकर स्नेह की स्थापना करनी चाहिए।
कभी-कभी जीवन रूपी आकाश में अचानक ही निराशा का घनघोर अंधेरा छा जाता है। विभिन्न समस्याओं रूपी धूल से धुंधलाए निराशा के बादल पृथ्वी को इस भांति बुरी तरह घेर लेते हैं कि दिन में ही रात हो जाती है। निराशा, भाय और आकांक्षाओं भरी उस काली रात में व्यक्ति को ऐसा लगता है कि अब फिर से स्थिति सामान्य नहीं होगी और निराशा की इन बादलों के बीच कभी आशाओं का सवेरा नहीं होगा। व्यक्ति जीवन में आई इन समस्याओं के उपद्रवरूपी दुष्परिणामों को सोच-सोच कर मन ही मन डरता रहता है। उसे अपने चारों ओर भाय का ही वातावरण नजर आता है। कविवर बच्चन कहते हैं कि इन सबके बीच व्यक्ति यह भूल जाता है कि प्रत्येक रात के बाद पूर्व दिशा में उषा अपनी मनमोहक मुस्कान बिखेरती अवश्य आती है और यह क्रम निरंतर चलता रहेगा।
अतः हे व्यक्ति रूपी पंछी ! तू अपने जीवनरूपी नीड के निर्माण में बार-बार लगे रहो और उसमें बार-बार स्नेह का रस घोलते रहो।
प्रसंग
वह चले झोंके कि काँपे
भीम कायावान भूधर,
जड़ समेत उखड़-पुखड़कर
गिर पड़े, टूटे विटप वर,
हाय, तिनकों से विनिर्मित
घोंसलो पर क्या न बीती,
डगमगाए जबकि कंकड़,
ईंट, पत्थर के महल-घर;
बोल आशा के विहंगम,
किस जगह पर तू छिपा था,
जो गगन पर चढ़ उठाता
गर्व से निज तान फिर-फिर!
नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्वान फिर-फिर!
२.
प्रसंग
इस पंक्ति में कविवर बच्चन यह प्रेरणा देते हैं कि भले ही मुसीबत और संकटों के झोंके चाहे कितने ही विनाश मचा दे, किंतु व्यक्ति को निराश होकर जीवन में हार मानकर नहीं बैठ जाना चाहिए।
व्याख्या
कविवर बच्चन कहते हैं कि- हे व्यक्ति रूपी पक्षी! जीवन में मुसीबतों और संकटों के झोंके आकर चाहे कितना ही विनाश मचाएं, चाहे आशाओं के विशाल आकार वाले पहाड़ जड़ से उखाड़ कर अस्त-व्यस्त हो पृथ्वी पर बिखर जाएं, चाहे तुम्हारे विश्वासों के बड़े-बड़े पेड़ टूट जाएं, मगर तुम्हे घबराना नहीं है। तुम तो जानते हो की आशाओं का एक-एक तिनका जोड़कर बनाए गए इस जीवन रूपी घोसलें को न जाने कितने आंधी- तूफानों को झेलना पड़ता है। कविवर बच्चन आपदाग्रस्त मनुष्य द्वारा उसके साहस और आशा को संबोधित करते हुए कहते हैं कि मुसीबतों के भूचाल में ईंट- पत्थर रूपी विश्वासों के महल डगमगा रहे थे, तब हे आशा के पंछी! तू किस कोने में छिपा पड़ा था? तुझे तो मुझे अपनी पंखों पर बैठाकर सफलता के आकाश के ऊंचे, और ऊंचे उठाना चाहिए था और फिर उस सफलता पर बार-बार अपने सीने को गर्व से उठाना चाहिए था। चल अभी भी कुछ नहीं हुआ है। तुझे फिर से जीवन रूपी नीड़ के निर्माण में लग जाना चाहिए और अपने प्रेम - प्यार का आह्वान करना चाहिए।
क्रुद्ध नभ के वज्र दंतों
में उषा है मुसकराती,
घोर गर्जनमय गगन के
कंठ में खग पंक्ति गाती;
एक चिड़िया चोंच में तिनका
लिए जो जा रही है,
वह सहज में ही पवन
उंचास को नीचा दिखाती!
नाश के दुख से कभी
दबता नहीं निर्माण का सुख
प्रलय की निस्तब्धता से
सृष्टि का नव गान फिर-फिर!
नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्वान फिर-फिर!
३.
प्रसंग
इस पंक्ति में कविवर बच्चन जी पंछी के माध्यम से मनुष्य को यह सांत्वना देकर निर्माण में जुट जाने का आह्वान किया है कि हर प्रलय के पश्चात नई सृष्टि की रचना अवश्य होती है।
व्याख्या
कविवर बच्चन जी आशाओं की किरण जगाकर मनुष्य को आश्वासन देते हुए कहते हैं की समस्याओं रूपी आकाश के कठोर दातों के बीच से ही आशा रूपी उषा मुस्काते हुए आती है और पक्षियों के समूह के गीत गाते स्वरों में अपनी सफलता की ऐसी भयंकर गर्जना करती है कि पूरा आकाश उसके गर्दन से भर उठता है यह देश इस अवसाद के वातावरण में भी एक चिड़िया निर्माण का संकल्प लिए अपनी चोंच में एक तिनका लेकर उड़ी चली जा रही है और अपनी उड़ान को कम करने में लगी वायु को वह अपने से उसी प्रकार कमतर सिद्ध करती जा रही है, तुझे भी उसे चिड़िया की भांति पवन को पराजित करते हुए अपनी उड़ान जारी रखनी चाहिए। बच्चन जी मानव मात्र को प्रेरित करते हुए और आगे कहते हैं की नाश के दुःख से कभी भी निर्माण का सुख दबता नहीं है क्योंकि प्रलय के महाविनाश के पश्चात छाए सुनेपन से ही नवनिर्माण का नया गीत बार-बार फूट पड़ता है। इसलिए हे मनुष्य रूपी पक्षी! तू बार-बार अर्थात निरंतर नवनिर्माण में लगा रह और अपने जीवन से प्रेम- प्यार को कभी दूर मत होने दे।
Short Question Answers
1.नीड का निर्माण फिर फिर का आशय स्पष्ट कीजिए?
उत्तर: कवि के कहने का तात्पर्य यह है कि विध्वंस के पश्चात ही निर्माण का कार्य होता है अतः यदि तुम (मानव) जीवन में सफलता प्राप्त करना चाहते हो, अपने जीवन रूपी घोसला का निर्माण उतनी बार करो जितनी बार जीवन में उतार चढ़ाव एवं दुःखागमन होता है। इसी में जीवन की सार्थकता है।
2.नीड़ का निर्माण फिर फिर में नीड शब्द का क्या अर्थ है?
उत्तर: नीड़ का निर्माण फिर फिर में नीड़ शब्द का अर्थ है घोंसला। व्यक्ति रूपी चिड़िया को सदैव अपने जीवन रूपी घोंसले के नवनिर्माण में लगे रहना चाहिए।
3.बह चले झोंके की कापें, भीम कयावान भूधर - अंश का अर्थ लिखें?
उत्तर: कविवर हरिवंश राय बच्चन कहते हैं कि - व्यक्ति रूपी पक्षी ! जीवन में मुसीबतों और संकटों के झोंके आकर चाहे कितना विनाश मचाए, चाहे आशाओं के विशाल आकार वाले पहाड़ जड़ से उखड़कर अस्त-व्यस्त हो पृथ्वी पर बिखर जाएं, मगर तुम्हें घबराना नहीं चाहिए।
4.आत्मत्राण कविता कहां से अवतरित है?
उत्तर: यह कविता कवि के कृति 'सतरंगिणी' से अवतरित है।
5.आत्मत्राण कविता का केंद्रीय भाव क्या है?
उत्तर: कवि अपनी पहली पत्नी की मृत्यु के पश्चात दुःख में घिर गए । उनके जीवन में अंधेरा छा गया, लेकिन प्राची से सूर्य निकाला और उसके प्रकाश ने कवि के जीवन में आस्था जगा दी। उनके अंदर जीने की चाह जगा दी और फिर से जीवन रूपी नीड़ के निर्माण की आकांक्षा मन में जाग उठी।
6.रात और दिन की प्रतीकात्मकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: रात और दिन क्रमशः दुख एवं सुख के प्रतीक है।
7.हर व्यक्ति तथा प्रकृति का एक-एक कण क्यों डरा हुआ है?
उत्तर: हर व्यक्ति तथा प्रकृति का कण-कण रात की उपद्रव से भयभीत है क्योंकि अंधेरे की भयावहता से उसे लगता है कि अब पता नहीं जीवन में उजाला आएगा या नहीं।
8.सूर्य की लालिमा किस बात का संकेत करती है?
उत्तर: सूर्य की लालिमा मन में नवजीवन का संचार करती है। सूर्य की मुस्कान मन मोहिनी होती है जो प्राकृतिक में प्रसन्नता का संदेश लेकर आती है। रात की निराशा के बाद दिन रुपी आशा का प्रारंभ होता है। इसी प्रकार मनुष्य के जीवन में दुःख के बाद सुख का आगमन होता है ।
9.मनुष्य को निर्माण की दिशा में क्यों प्रयत्नशील रहना चाहिए? यह किस बात का सूचक है?
उत्तर: यह प्राकृतिक का शाश्वत नियम है कि रात के बाद दिन एवं दुख के बाद सुख आते हैं इसीलिए मानव को निर्माण की दिशा में प्रयत्नशील रहना चाहिए क्योंकि संसार का क्रम निर्माण से ही चलता रहता है।
10."भीम कायावान भूधर" का अर्थ स्पष्ट करते हुए उनके कांपने का कारण बताइए?
उत्तर: भीम कयावान भूधर का तात्पर्य बहुत बड़े पहाड़ से है । जब कभी जोर की आधी आती है तो ऐसे बड़े-बड़े पहाड़ भी कांप जाते हैं और भयभीत हो जाते हैं कवि के कहने का तात्पर्य यह है कि किसी बड़े दुख के आने से धैर्यवान व्यक्ति भी कंम्पित हो जाते हैं।
11.तूफान आने से बड़े-बड़े महलों की क्या दशा हो गई थी?
उत्तर: कवि कहता है कि तूफान के आने पर बड़े-बड़े महल भी डगमगा जाते थे, उनमें भी तूफान का सामना करने की हिम्मत नहीं थी। चारों तरफ प्रलय का वातावरण उत्पन्न हो रहा था, तो फिर तीनकों से बने घोसलें तो नष्ट होने ही थे।
12."आशा का विहंगम" वाक्यांश का प्रयोग कवि ने किस अर्थ में किया है?
उत्तर: उक्त वाक्यांश का प्रयोग कवि ने मनुष्य की आशा के लिए किया है उसका कहना है कि निराशा भरे वातावरण में भी आशा किसी कोने में छिपी रहती है जो दुख के काम होने पर मनुष्य को पुनः काम करने के लिए उत्साह प्रदान करती है।
13.प्रकृति से मनुष्य को क्या संदेश मिलता है?
उत्तर: प्रकृति से मनुष्य को यह संदेश मिलता है कि जिस प्रकार पतझड़ के बाद बसंत आता है उसी प्रकार दुख के बाद सुख भी आता है अतः निराशावादी होना चाहिए और विनष्ट हुई चीज के निर्माण में पुनः सक्रिय हो जाना चाहिए।
14."क्रुद्ध नभ के वज्रदंतों में उषा है मुस्कुराती" का तात्पर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: इस पंक्ति द्वारा कवि यह संदेश देना चाहता है कि जिस प्रकार काले बादलों से घिरे हुए और गरजते हुए आकाश में से उषा मुस्कुराती है वैसे ही महान दुःख के पीछे सुख खड़ा मुस्कुराता रहता है और अपने आने की तैयारी कर रहा है।
15.प्राकृतिक में भयंकरता के बावजूद चिड़िया चोंच में तिनका दबाए जा रही है इससे कवि किसी बात को स्पष्ट करना चाहता है ?
उत्तर: प्राकृतिक में भयंकरता के बावजूद चिड़िया चोंच में तिनका दबाए जा रही है इससे कवि कहना चाह रहा है कि मनुष्य को पक्षि से सबक लेना चाहिए कि विनाश होने पर निराश होकर नहीं बैठना चाहिए। अपने मन में आशा की किरण जगा कर पुनः निर्माण की ओर अग्रसर होना चाहिए।
16.घोर गर्जनमय गगन में क्या होता है?
उत्तर: बादलों की घोर गर्जना करते हुए आकाश में भी पंछियों की पंक्ति उड़ती है और गीत गाते हुए चलती है।
चिड़िया चोंच में तिनका लिए कहां जा रही है? वह किसे नीचा दिखा रही है?
उत्तर: चिड़िया अपनी चोंच में एक तिनका लेकर अपना घोंसला बनाने जा रहे हैं और आंधी ने उसका घोसला नष्ट कर दिया था। वह साहस का परिचय देते हुए अपना घोंसला बनाएगी । वह उनचास पवनो को अपने साहस के सामने नीचा दिखा रही है।
17.ऐसा क्या कारण था कि पेड़ भी टूट कर गिर गया?
उत्तर: तेज आंधी की वेग से पेड़ भी उखाड़ कर गिर पड़े। यहां पर भी संकेत महान दुःख के आने से है जिससे आदमी निराश हो जाता है और अपने को समाप्त हुआ मानता है।
18.दुःख आने पर मनुष्य को क्या लगता है ?
उत्तर: दुःख आने पर मनुष्य को यह लगता है कि यह पहाड़ के समान दुःख सिर्फ मेरे ही सामने है, यह स्थिर है, और इसके बाद सुख आएगा ही नहीं।
19.घोंसला किस्से बनता है? इस तूफान में उसकी स्थिति कैसी हो गई होगी?
उत्तर: घोसला घास के तिनको से बनता है तूफान के समय उसकी स्थिति तो दयनीय हो गई होगी। वह तो टूटकर इधर-उधर बिखर गया होगा। तूफान के सामने उसकी शक्ति तो बहुत कम है।
20.पंक्षियों की पंक्ति किस स्थिति में क्या करती जा रही है?
उत्तर: आकाश में मेघों की गर्जना हो रही है फिर भी चिड़ियों को पंक्ति गीत गाती हुई उड़ती जा रही है । अर्थात दुःख का वातावरण भी उस पर अधिक प्रभाव नहीं डाल रहा।
21.नाश के दुःख से किस प्रकार का सुख नहीं दबता है?
उत्तर: नाश के दुःख से निर्माण का सुख कभी नहीं दबता है।
22.प्राकृतिक से मनुष्य को क्या संदेश मिलता है?
उत्तर: प्राकृतिक से मनुष्य को निरंतर निर्माण का संदेश मिलता है ।
23.कौन पवन उनचास को नीचा दिखाती है?
उत्तर: एक चिड़िया पवन उनचास (तीव्र गति से चलती हुई हवाएं) को नीचा दिखाती है।
24.पवन उनचास का क्या तात्पर्य है?
उत्तर: पवन उनचास का तात्पर्य है - तीव्र गति से चलती हुई हवाएं । 'ऋग्वेद' में वायु देवताओं की संख्या उनचास (49) बताई गई है अतः 49 तरह के पवन होते हैं। इस शब्द का प्रयोग कर कवि कहना चाहता है कि चोंच में तिनका लेकर ऊपर उड़ान भर्ती हुई चिड़िया इन पवन उनचास (49) को नीचा दिखा रही हैं।
25.चिड़िया चोंच में तिनका लेकर क्या सिद्ध करना चाहती है?
उत्तर: चिड़िया अपनी चोंच में एक तिनका लेकर अपना घोंसला बनाने जा रही है और आंधी ने उसका घोंसला नष्ट कर दिया था वह साहस का परिचय देते हुए अपना घोंसला बनाएगी वह उनचास (49) पवनो को अपने साहस के सामने नीचा दिखा रही है।
26.नीड़ किसका प्रतीक है?
उत्तर: नीड़ जीवन रूपी घोसलें का प्रतीक है।
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