विनय के पद - व्याख्या ( class 9 question answer Summary of Vinay ke pad by Tulsidas )

विनय के पद(Vinay Ke Pad)



हिन्दी साहित्य के भक्तिकाल में गोस्वामी तुलसीदास का स्थान बहुत महत्त्वपूर्ण है। तुलसीदास के जन्म और मृत्यु के विषय में विद्‌वानों में मतभेद है। अधिकांश विद्‌वानों का मानना है कि इनका जन्म उत्तर प्रदेश के बाँदा ज़िले के राजापुर नामक गाँव में सन्‌ 1532 में हुआ था।गुरु नरहरिदास इनके गुरु थे। तुलसीदास ने भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में प्रतिष्ठित किया। उन्होंने राम कथा पर आधारित विश्व-प्रसिद्‌ध महाकाव्य ” रामचरितमानस” की रचना की। तुलसीदास राम के अनन्य भक्त थे।तुलसीदास ने ब्रज और अवधि दोनों भाषा में समान रूप से लिखा। तुलसीदास ने अपनी रचनाओं के द्‌वारा आदर्श समाज की स्थापना पर जोर दिया जिसमें न्याय, धर्म, सहानुभूति, प्रेम और दया जैसे मानवीय गुणों पर विशेष ध्यान दिया है।

प्रमुख रचनाएँ – गीतावली, कवितावली, दोहावली, पार्वती मंगल, हनुमान बाहुक आदि।

तुलसीदास राम के अनन्य भक्त थे। उन्होंने विष्णु के अवतार भगवान राम की दास्य-भक्ति की। उन्होंने अपनी प्रसिद्‌ध ग्रन्थ ‘रामचरितमानस’ में विस्तार से राम की महिमा का गुणगान किया है। तुलसीदास ने भगवान राम को  मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में प्रस्तुत किया है। राम की कृपादृष्टि होने से मनुष्य भवसागर के कष्टों से मुक्त हो जाता है। उसे सांसारिक सुखों की भी कमी नहीं रहती। शबरी, जटायु और विभीषण का उदाहरण हमारे सामने प्रस्तुत है।

व्याख्या 

ऐसी मूढ़ता या मन की।

परिहरि राम-भगति-सुरसरिता, आस करत ओसकन की॥

धूम-समूह निरखि चातक ज्यों, तृषित जानि मति घन की।

नहिं तँह सीतलता बारि, पुनि हानि होति लोचन की॥

ज्यों गच-काँच बिलोकि सेन जड़ छाँह आपने तन की।

टूटत अति आतुर अहार बस, छति बिसारि आनन की॥

कहँ लौं कहौं कुचाल कृपानिधि! जानत हौ गति जन की।

तुलसिदास प्रभु हरहु दुसह दु:ख, करहु लाज निज पन की॥

व्याख्या
प्रस्तुत पद में तुलसीदास कहते हैं कि यह मन ऐसा मूर्ख है कि यह श्री राम की भक्ति रूपी गंगा को छोड़कर अन्य देवताओं की भक्ति रूपी ओस की बूंदों से तृप्त होना चाहता है इस मन की दशा तो उस प्यासे पपीहे है की तरह है जो धुएं के पुंज को मेघ समझ लेता है लेकिन वहां जाने पर न उसे शीतलता मिलती है और ना ही जल । उल्टे धुएं से उसकी आंखें फूट जाती है मेरे मन की दशा उस मूर्ख बाज पक्षी की तरह है जो अपनी ही परछाई को कांच के फर्श में देखता है और उसे चोंच से मार कर अपनी भूख मीटाना चाहता है ठीक इसी प्रकार मेरा मन भी सांसारिक विषय वासनाओं पर टूट पड़ता है हे कृपा के भंडार अपने मन के इस कुचाल का मैं कहां तक वर्णन करूं आपसे तो अपने दासों की दशा छिपी नहीं है इसलिए आप मेरे दुखों को दूर करें तथा अपने भक्तों के उद्धर का प्राण पूरा करें


माधव, मोह-पास क्यों छूटै।
बाहर कोट उपाय करिय अभ्यंतर ग्रन्थि न छूटै॥1॥
घृतपूरन कराह अंतरगत ससि प्रतिबिम्ब दिखावै।
ईंधन अनल लगाय कल्पसत औंटत नास न पावै व2॥
तरु-कोटर मँह बस बिहंग तरु काटे मरै न जैसे।
साधन करिय बिचारहीन मन, सुद्ध होइ नहिं तैसे॥3॥
अंतर मलिन, बिषय मन अति, तन पावन करिय पखारे।
मरै न उरक अनेक जतन बलमीकि बिबिध बिधि मारे॥4॥
तुलसीदास हरि गुरु करुना बिनु बिमल बिबेक न होई।
बिनु बिबेक संसार-घोरनिधि पार न पावै कोई॥5॥

व्याख्या
प्रस्तुत पद में तुलसीदास अपनी दैन्य भावना को प्रकट करते हुए कहते हैं कि हे माधव ! मेरे मन कि यह फांसी किस प्रकार टूटेगी ? मैं बाहर से चाहे करोड़ों कोशिश करूं लेकिन उससे हृदय की अज्ञानता रूपी गांठ नहीं छूट सकती । जिस प्रकार घी से भरे हुए कडाह में चंद्रमा की जो परछाई होती है वह सौ कल्प तक ईंधन और आग लगाकर औटाने से भी नष्ट नहीं हो सकती । ठीक इसी प्रकार जब तक मोह रहेगा तब तक या आवागमन की फांसी भी रहेगी । जैसे किसी पेड़ के क्वार्टर में रहने वाले पक्षी को पेड़ काटने से नहीं मारा जा सकता, जैसे सांप के बिल के बाहर अनेक प्रहार करने से सांप नहीं मरता है, ठीक वैसे ही शरीर को खूब रगड़ रगड़ कर धोने से मन कभी पवित्र नहीं हो सकता है । तुलसीदास कहते हैं कि जब तक भगवान और गुरु की दया नहीं होगी तब तक विवेक नहीं होगा और बिना विवेक के कोई इस गहन _संसार  सागर से पार नहीं हो सकता ‌।


अस कछु समुझि परत रघुराया !

बिनु तव कृपा दयालु ! दास - हित ! मोह न छूटै माया ॥१॥

बाक्य - ग्यान अत्यंत निपुन भव - पार न पावै कोई ।

निसि गृहमध्य दीपकी बातन्ह, तम निबृत्त नहिं होई ॥२॥


जैसे कोइ इक दीन दुखित अति असन - हीन दुख पावै ।

चित्र कलपतरु कामधेनु गृह लिखे न बिपति नसावै ॥३॥

षटरस बहुप्रकार भोजन कोउ, दिन अरु रैनि बखानै ।

बिनु बोले संतोष - जनित सुख खाइ सोइ पै जानै ॥४॥

जबलगि नहिं निज हदि प्रकास, अरु बिषय - आस मनमाहीं ।

तुलसिदास तबलगि जग - जोनि भ्रमत सपनेहुँ सुख नाही ॥५॥


व्याख्या
प्रसिद्ध पद में कवि तुलसीदास श्री राम से विनती करते हुए कहते हैं कि हे रघुनाथ ! मेरी समझ से आपकी कृपा के बिना माया मोह से छुटकारा नहीं मिल सकता है । जैसे रात में घर के अंदर केवल दीपक की चर्चा करने से ही अंधकार दूर नहीं हो सकती है, ठीक वैसे ही जैसे कोई वाचक कितना ही ज्ञानवान हो लेकिन वह इस भवसागर को पार नहीं कर सकता । जिस प्रकार एक दीन व्यक्ति जो भोजन के अभाव में दुख पा रहा हो और वह घर में कल्पवृक्ष तथा कामधेनु का चित्र बनाकर अपनी विपत्ति को दूर करना चाहे तो दूर नहीं हो सकता है । इसी प्रकार केवल शास्त्रों की बात भर करने से मोह माया से छुटकारा नहीं पाया जा सकता है । भोजन करने के बाद जो संतुष्टि होती है , वह संतुष्टि केवल छ: रसों से परिपूर्ण भोजन की बातें करने से नहीं हो सकती है । इसी प्रकार केवल बातें बनाने से किसी कार्य की सिद्धि नहीं होती है । जब तक मन में सांसारिक विषय वासनाओं की आशा बनी है तब तक इस संसार के विभिन्न योनियों में ही जन्म लेकर भटकना पड़ेगा सपने में भी सुख की प्राप्ति नहीं होगी ।



कबहुंक हौं यहि रहनि रहौगो।
श्री रघुनाथ-कृपाल-कृपा तैं, संत सुभाव गहौगो।
जथा लाभ संतोष सदा, काहू सों कछु न चहौगो।
परहित निरत निरंतर, मन क्रम बचन नेम निबहौगो।
परुष बचन अति दुसह स्रवन, सुनि तेहि पावक न दहौगो।
बिगत मान सम सीतल मन, पर-गुन, नहिं दोष कहौगो।
परिहरि देहजनित चिंता दु:ख सुख समबुद्धि सहौगो।
तुलसीदास प्रभु यहि पथ रहि अबिचल हरिभक्ति लहौगो।

व्याख्या
प्रस्तुत पद में तुलसीदास ने अपनी  अवस्था का वर्णन करते हुए श्री राम से कृपा करने की विनती की है । तुलसीदास जी कहते हैं कि आखिर मैं कब तक इस दशा में रहूंगा कब श्री राम की कृपा से मैं संतों का सा स्वभाव ग्रहण कर सकूंगा । जो कुछ मिलेगा मैं उसी से संतुष्ट रहूंगा तथा किसी से भी कुछ नहीं चाहूंगा मैं निरंतर दूसरों की भलाई करने में ही अपना जीवन व्यतीत करूंगा । 
मन वचन और कर्म से अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, सौंच, संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर- प्रणिधान का पालन करूंगा । अपने कानों से अत्यंत कठोर तथा अशम्य वचन सुनकर भी क्रोध की आग में नहीं जालूंगा, अपना अभिमान छोड़कर हर एक परिस्थिति में समान भाव से रहूंगा । मैं दूसरों की स्तुति या निंदा भी नहीं करूंगा क्योंकि जब  मेरा  मन आपकी भक्ति में लगा रहेगा तो इन सबके लिए ही समय ही नहीं मिलेगा अपने शरीर से जुड़ी चिंताओं को छोड़कर सुख और दुख दोनों को ही समान भाव से ग्रहण करूंगा । तुलसीदास जी कहते हैं कि मैं भक्ति के इसी मार्ग पर चलकर अविचल भाव से आपकी भक्ति करूंगा

विनय के पद (भावार्थ)  

 तुलसीदास प्रश्नों के उत्तर दीजिए पद के आधार पर।

Short Questions and Answers  


विनय के पद
1.तुलसीदास ने राम भक्त की तुलना  किससे की है?
सुरसरिता अर्थात गंगा से ।
2. चातक को धुएं से किसका भ्रम होता है?
बादल का । 


3. पुनि हानि होता लोचन की - किसके लोचन के हानि होती है और क्यों ?

 चातक के लोचन के हानि होती है क्योंकि वह धुएं के समूह को ही बदल समझ लेता है ।


4. गरुड़ कांच के फर्श में अपनी छाया देखकर क्या सोचता है ? 

जब गरुड़ कांच के फर्श में अपनी छाया देखता है तो उसे अपना शिकार समझता है जिससे वह भूख मिटाएगा ।


5.किस से अपने दसों के मन की दशा छिपी नहीं है? 

 श्री राम से अपने दासों के मन की दशा छिपी नहीं है। 


6.तुलसीदास जी श्री राम से क्या प्रार्थना करते हैं ? 

तुलसीदास श्री राम से या प्रार्थना करते हैं कि आप मेरे दुखों को दूर करके भक्तों के उद्धार के वचन को पूरा करें ।


7. तुलसीदास ने कृपा का भंडार किसे कहा है? 

 श्री राम को ।


8.तुलसीदास ने माधव कहकर किसी संबोधित किया है? 

 श्री राम को ।


9.बाहर से करोड़ों कोशिश करके भी कौन से गांठ नहीं छूट सकती ? 

 बाहर से करोड़ों कोशिश करने पर भी हृदय की अज्ञानता रूपी गांठ नहीं छूट सकती है।


10.तुलसीदास के अनुसार किसके दया के बिना विवेक की प्राप्ति नहीं होगी ?

ईश्वर तथा गुरु की दया के बिना विवेक की प्राप्ति नहीं हो सकती है 


11.इस गहन संसार सागर से कैसे पार हुआ जा सकता है ?

विवेक एवं ईश्वर की कृपा की सहायता से ही इस गहन संसार सागर से पर हुआ जा सकता है।


12. अस कुछ समझो परत रघुराया- में  रघुराया का क्या अर्थ है

 श्री राम ।


13.वाक्य ज्ञान अत्यंत निपुण, भव पर ना पावे कोई अर्थ स्पष्ट करें ?

 प्रस्तुत पंक्ति का अर्थ है कोई वाचक कितना ही  ज्ञानवान हो लेकिन केवल इस चीज के भरोसे वह इस भवसागर को पर नहीं कर सकता।


14.कौन से चित्र से घर की विपत्ति दूर नहीं हो सकती है?

 कल्पवृक्ष तथा कामधेनु की चित्र से चित्र कल्पतरु कामधेनु ग्रह लिखे विपत्ति नशा भाई अर्थ स्पष्ट करें तथा कामधेनु का चित्र घर में बनने से व्यक्ति का नाश नहीं हो सकता।


15.षटरस बहु प्रकार भोजन कोई दिन अरु रैन बखाने - अर्थ स्पष्ट करें ? 

तुलसीदास कहते हैं कि केवल छह रसों से परिपूर्ण भोजन की बातें करने से संतुष्टि नहीं मिल सकती


16.तुलसीदास के अनुसार कब तक विभिन्न योनियों मे जन्म लेकर भटकना पड़ेगा? 

जब तक मन में सांसारिक विषय वासनाओं की आशा बनी है तब तक इस संसार के विभिन्न योनियों में ही जन्म लेकर भटकना पड़ेगा


17.कबहुंक हौ यहि रहनि रहौंगे- यह किसकी उक्ति है अर्थ लिखे ।

यह तुलसीदास की उक्ति है। इसका अर्थ है कि आखिर  मैं कब तक इस दशा में रहूंगा 


18.किसकी कृपा से तुलसीदास संतों का सा स्वभाव ग्रहण करेंगे ? 

श्री राम की कृपा से तुलसीदास संतों का सा स्वभाव ग्रहण करेंगे । 


19.चातक किसका प्रतीक है?

चातक एकनिष्ठ भक्त का प्रतीक है ।


20.तुलसीदास ने मन को मूर्ख क्यों कहा है ? 

यह मन राम भक्त रूपी गंगा को छोड़कर अन्य देवों की भक्ति रूपी ओसकण से अपने प्यास बुझाना चाहता है इसीलिए तुलसीदास ने मन को मूर्ख कहा है ।


21.चातक किसकी ओर निहारता है और क्यों ?

चातक स्वाति नक्षत्र के बादलों की ओर निहारता है क्योंकि वह प्यास केवल स्वाति नक्षत्र की बूंदों से ही बुझाता है ।


22."करहु लाज निजपन की"-  यह किसके द्वारा रचित है वक्ता का आशय स्पष्ट करें ? 

यह तुलसीदास के द्वारा रचित है वक्ता का आशय है कि प्रभु अब अपना वचन निभाएं।


23.तुलसीदास ने अभ्यंतर ग्रंथि किसे कहा है ? 

तुलसीदास ने हृदय में स्थित अज्ञान, मोह माया , अहंकार आदि भावनाओं को  अभ्यंतर ग्रंथि कहा है ।


24.षटरस का अर्थ क्या है? 

 षटरस का अर्थ है 6 प्रकार के रस या स्वाद । ये हैं - मीठा, नमकीन , कड़वा , तीता , कसैला और खट्टा ।


25.मोह-फांस का क्या अर्थ है? 

मोह- फांस का अर्थ है - मोह रूपी फांसी । सांसारिक माया मोह आदि ही मोह रूपी फांसी है।


26.जथालाभ संतोष सदा , कहू सो कहु न चाहौगो- का क्या अर्थ है?

प्रस्तुत पंक्ति का अर्थ है कि जितना प्राप्त होगा मैं उतने में ही संतोष करूंगा तथा इसके अतिरिक्त किसी से कुछ ना चाहूंगा ।


27.अर्थ स्पष्ट करें - परहित - निरत निरंतर , मन - क्रम - वचन नेम निबहौगो ।

प्रस्तुत पंक्ति में तुलसीदास कहते हैं कि मैं सदा दूसरों की भलाई में रत रहकर मन, कर्म और वचन से या नियम निभाऊंगा ।


28.परुष वचन अति दुसह स्वप्न सुनि, तेहि पावक ना दहौंगो- मे कौन क्या कहना चाहता है ?

प्रस्तुत पद में तुलसीदास कहना चाहते हैं कि मैं दूसरों की कठोर वचन सुनकर भी उसकी अग्नि में नहीं जलूंगा अर्थात प्रतिशोध की आग में नहीं जलूंगा।


29.तुलसीदास किस चिंता को छोड़ देने की बात करते हैं?

 तुलसीदास शरीर से जुड़ी चिंता को छोड़ देने की बात कहते हैं।


 30.तुलसीदास ने किसे समबुद्धि से ग्रहण करने की बात कही है? 

तुलसीदास ने दुख और सुख दोनों को समान भाव से ग्रहण करने की बात कही है ।


31.तुलसीदास श्री राम से अपनी कौन सी इच्छा प्रकट करते हैं ?

तुलसीदास संतों के बताएं मार्ग पर चलकर हरि भक्ति को प्राप्त करने की इच्छा श्री राम से प्रकट करते हैं।


32.तुलसीदास के अनुसार हृदय में ज्ञान रूपी प्रकाश कब तक नहीं फैल सकता है ?

तुलसीदास के अनुसार जब तक यह मन सांसारिक विषय वासनाओं में फंसा रहेगा तब तक इसमें ज्ञानरूपी प्रकाश नहीं फैल सकता है।


33.तुलसीदास भवसागर से मुक्ति पाने के लिए किस से विनती करते हैं ? 

श्री राम  से । 


34.किन बातों से इस भवसागर से मुक्ति नहीं मिलने वाली है ?

केवल कल्पना करने या बातें बनाने से इस भवसागर से मुक्ति नहीं मिलने वाली है ।


35. किसकी कृपा से तुलसीदास संत स्वभाव को ग्रहण करेंगे? 

 श्री राम की कृपा से तुलसीदास संत स्वभाव को ग्रहण करेंगे।


 36.तुलसीदास के अनुसार आवागमन का बंधन कब तक रहेगा ? 

जब तक यह मन सांसारिक विषय वस्तुओं में लिप्त रहेगी तब तक आवागमन का बंधन नष्ट नहीं  होगा।


37.मन की शुद्धि के लिए क्या आवश्यक है ?

मन की शुद्धि के लिए विवेक का होना आवश्यक  है।


38.किसकी कृपा के बिना माया मोह से छुटकारा नहीं मिल सकता है?

 श्री राम की कृपा के बिना मोह माया से छुटकारा नहीं मिल सकता है 


39.षटरस के स्वादों के सुख को कौन जान सकता है ?

जिसने षटरस के स्वाद को चखा है वही उसके सुख को जान सकता है।


40.तुलसीदास ने मूर्ख मन की तुलना किससे की है?

 तुलसीदास ने मूर्ख मन की तुलना चातक और गरुड़ पक्षी से की है।


 41.कौन धुएं के समूह को बादल समझ लेता है?

 चातक धुएं के समूह को बदल समझ लेता है।


42.तुलसीदास किसके स्वभाव को ग्रहण करना चाहते हैं ?

तुलसीदास संतों के स्वभाव को ग्रहण करना चाहते हैं।


43.तुलसीदास ने कृपानिधि किसे कहा है ? 

तुलसीदास ने श्री राम को कृपानिधि कहा है।


44.तुलसीदास ने संसार की तुलना किससे की है?

 तुलसीदास ने संसार की तुलना सागर से की है।


Comments

Popular posts from this blog

2nd Part Of 20th Century: Post-Colonial India (1947-64) (History _Chapter 8 ~ WBBSE Madhyamik Questions and Answers )

Chapter 4 ~ Waste Management ( Madhayamik Important Questions and Answers)

Movements Organized By Women, Students, And Marginal People In 20th Century India: Characteristics And Analyses (History _Chapter 7~ WBBSE Questions and Answers ) Madhyamik