Saakhi (साखी) , पद, ( संत कबीर दास जी ) Summary, Explanation, Word meanings, MCQs, Class 12 semester 3

 Saakhi (साखी) Summary, Explanation, Word meanings, MCQs, Class 12 Semester 3 


संत कबीर दास जी: जीवन और दर्शन (विस्तारित)

कबीर दास जी :(अनुमानित 1398-1518 .) मध्यकालीन भारत के भक्ति आंदोलन के सबसे प्रमुख संत और कवि थे। उनकी रचनाएँ भारतीय आध्यात्मिकता, समाज सुधार और साहित्य का एक अमूल्य हिस्सा हैं।

1. निर्गुण भक्ति के प्रणेता

  एक ईश्वरवाद: कबीर जी निर्गुण ब्रह्म (ईश्वर का निराकार स्वरूप) के उपासक थे। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि ईश्वर मंदिर में है, मस्जिद में, बल्कि हर प्राणी के हृदय में निवास करता है।

  राम और रहीम की एकता: उनका दर्शन हिंदू और इस्लाम दोनों धर्मों की श्रेष्ठ बातों को मिलाता है। उन्होंने राम और रहीम को एक ही परम सत्ता के दो नाम माना और धार्मिक सद्भाव पर ज़ोर दिया। 

2. सामाजिक क्रांति का स्वर

  आडंबरों का खंडन: कबीर ने मूर्ति पूजा, तीर्थ यात्रा, व्रत-उपवास, माला फेरना और लंबी जटाएँ रखने जैसे बाहरी कर्मकांडों का कड़ा विरोध किया। उन्होंने कहा कि सच्ची भक्ति दिखावे में नहीं, बल्कि हृदय की पवित्रता में है।

  जाति-भेद का विरोध: उन्होंने समाज में व्याप्त जाति-भेद, ऊँच-नीच और अस्पृश्यता का तीव्र विरोध किया। उनके लिए ईश्वर की दृष्टि में सभी मनुष्य समान हैं।

  भाषा: उन्होंने संस्कृत या फारसी के बजाय आम जनता की भाषा सधुक्कड़ी (पंचमेल खिचड़ी) का प्रयोग किया, जिससे उनके संदेश दूर-दूर तक फैल सके।

कबीर की 'साखी' का साहित्यिक और दार्शनिक महत्व

साखी का शाब्दिक अर्थ है 'साक्षी' (गवाह) ये दोहे कबीर के प्रत्यक्ष अनुभव और ज्ञान के प्रमाण हैं।

1. साखी का केंद्रीय विषय: प्रेम और विरह

कबीर की साखियों में भक्ति के दो मुख्य भाव मिलते हैं:

 विरह-वेदना (Pain of Separation): भक्त (जीवात्मा) स्वयं को ईश्वर (परमात्मा) की प्रेयसी मानकर, उनसे बिछड़ने के गहरे दर्द को व्यक्त करता है। यह विरह ही भक्त को निरंतर साधना के लिए प्रेरित करता है।

   उदाहरण: "अंखड़ियाँ झांई परी, पंथ निहारि निहारि। जीभड़िया छाला परा, राम पुकारि पुकारि।।" (ईश्वर के इंतज़ार में आँखों का थक जाना विरह की पराकाष्ठा है।)

 अद्वैत और विलय: विरह के अंत में जब भक्त अपनी हस्ती ('मैं' या अहंकार) मिटा देता है, तो वह ईश्वर में विलीन हो जाता है। यही अद्वैत की चरम स्थिति है।

   उदाहरण: "तूं तूं करता तूं भया, मुझमें रही हूँ। बारी फेरि बलि गई, जित देखूं तित तूं।।"

2. साखी का साहित्य सौंदर्य

  छंद (Meter): साखी मूल रूप से दोहा छंद में रची गई है, जो हिंदी और अवधी साहित्य का एक लोकप्रिय और सरल छंद है। (13-11 मात्राओं का विधान)

  रस (Sentiment): इन साखियों में मुख्य रूप से शांत रस की प्रधानता है, जो वैराग्य, ज्ञान और परम शांति का भाव उत्पन्न करता है। हालांकि, विरह के वर्णन में वियोग श्रृंगार रस का भी समावेश है।

  अलंकार: कबीर की साखियों में उपमा, रूपक और मानवीकरण अलंकार (जैसे मिट्टी का बोलना) का सहज प्रयोग मिलता है।

समकालीन प्रासंगिकता (Contemporary Relevance)

आज भी, कबीर की साखियाँ समाज के लिए अत्यंत प्रासंगिक हैं:

  सहिष्णुता का संदेश: आज के धार्मिक संघर्षों में, कबीर का राम और रहीम को एक मानना धार्मिक सहिष्णुता और भाईचारे का सबसे बड़ा आधार है।

  आंतरिक विकास: कबीर की शिक्षाएँ हमें सिखाती हैं कि वास्तविक विकास बाहरी संपदा या दिखावे में नहीं, बल्कि आंतरिक शुद्धि, आत्म-नियंत्रण और ईमानदारी में निहित है।

  असमानता का विरोध: कबीर आज भी हाशिए पर पड़े लोगों और न्याय की माँग करने वालों के लिए एक प्रेरक आवाज़ बने हुए हैं।

 

मुख्य बिंदु :

  •   कबीर का मूल संदेश है: 'अहंकार छोड़ो, गुरु को पूजो, और ईश्वर को अपने भीतर खोजो।'
  •   कबीर की साखी हमें सिखाती है कि धार्मिक पाखंड और बाहरी दिखावा व्यर्थ है।
  •   कबीर की भाषा (सधुक्कड़ी) की सरलता ही उनके गहन दार्शनिक संदेशों को आम जनता तक पहुँचाने का माध्यम बनी।
  •  जीवात्मा और परमात्मा का मिलन तभी संभव है जब 'मैं' (Ego) समाप्त हो जाए।

साखी ~

माटी का एक नाग बनाके, पुजे लोग लुगाया।

जिंदा नाग जब घर में निकले, ले लाठी धमकाया ॥१॥


माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रोंदै मोहे।

एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौदूंगी तोहे ॥२॥


तीरथ गए एक फल, संत मिले फल चार।

सतगुरु मिले अनेक फल, कहे कबीर विचार ॥३॥


सतगुरु की महिमा अनंत, अनंत किया उपगार।

लोचन अनंत उघारिया, अनंत दिखणहार ॥४॥


सतगुरु सवाँ न को सगा, सोधी सईं न दाति ।

हरि जी सवाँ न को हितू, हरिजन सईं न जाति ॥५॥


अंषड़ियाँ झाँई पड़ी, पंथ निहारि-निहारि।

जीभड़ियाँ छाला पड्या, राम पुकारि-पुकारि ॥६॥


सबैं रसायन मैं किया, हरि रस सम नहि कोई।

रंचक घट में संचरै, तो सब तन कंचन होई ॥७॥


तूं तूं करता तूं भया, मुझमें रही न हूं।

वारी तेरे नांऊँ परि, जित देखों तित तूं ॥८॥


मन मथुरा दिल द्वारिका, काया कासी जांनि।

दसवां द्वारा देहुरा, तामैं जोति पिछांनि ॥९॥


हेरत हेरत हे सखी, रहा कबीर हिराइ।

बूंद समांनीं समुद में, सो कत हेरी जाइ ॥१०॥


जाकै मुंह माथा नहीं, नांहि रूप कुरुप।

पुहुप बास तै पातैरा, ऐसा तत अनूप ॥११॥


1. शब्दार्थ (Word Meanings)

 नाग :               साँप 

 लुगाया          स्त्रियाँ/लोग-बाग 

 माटी :              मिट्टी 

कुम्हार          मिट्टी के बर्तन बनाने वाला 

 रौंदे :               कुचलना/पैरों से दबाना 

 लोचन :           आँखें 

उघारिया :         खोल दिए 

 सगा  :              रिश्तेदार/बंधु 

 सोधी :              सच्चा/पवित्र 

 दाति :             दाता/दान करने वाला |

 झांई परी :         आँखों के नीचे कालापन पड़ना/थक जाना 

 पंथ :              रास्ता 

 निहारि :            देखना/इंतज़ार करना 

 रसाइन :           रसायन/औषधि 

 कंचन  :            सोना (स्वर्ण

 बारी :               न्योछावर/बलिहारी होना 

 देहुरा :              मंदिर/देवस्थान 

 पुहुप  :             पुष्प/फूल 

 बास  :             सुगंध/खुशबू 



सामान्य सारांश (General Summary)

कबीर की ये साखियाँ सामाजिक आडंबरों और रूढ़ियों पर करारा प्रहार करती हैं। वे धार्मिक पाखंड को उजागर करते हैं (जैसे मिट्टी के साँप की पूजा करना) इन दोहों का मुख्य केंद्र बिंदु सतगुरु की महत्ता है, जो तीर्थयात्राओं से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि वही ज्ञान रूपी आँखें खोलते हैं। कबीर ईश्वर से वियोग (विरह) की पीड़ा को व्यक्त करते हैं और अंत में बताते हैं कि 'मैं' (अहंकार) को मिटाकर ईश्वर में विलीन हो जाना ही सच्चा योग है। वे बाहरी पूजा स्थलों के बजाय शरीर के भीतर स्थित आंतरिक तीर्थों को पहचानने पर ज़ोर देते हैं।


साखी-वार भावार्थ (Stanza-wise Summary)

साखी 1: माटी का एक नाग बनाके...

  भावार्थ: लोग मिट्टी का एक साँप बनाकर उसकी पूजा करते हैं, लेकिन जब सचमुच का साँप घर में निकल आता है, तो वे उसे लाठी मारकर भगाते या मार डालते हैं।

 संदेश: कबीर धार्मिक पाखंड और अंधविश्वास पर कटाक्ष करते हैं कि लोग निर्जीव प्रतीकों की पूजा करते हैं, लेकिन जीवित प्राणी के प्रति हिंसा करते हैं।


साखी 2: माटी कहे कुमार से...

 भावार्थ: मिट्टी कुम्हार से कहती है कि तू आज मुझे रौंद रहा है, पर घमंड मत कर। एक दिन ऐसा आएगा जब मैं (मिट्टी) तुझे रौंदूँगी (अर्थात् मृत्यु के बाद कुम्हार भी मिट्टी में मिल जाएगा)

 संदेश: यह मानव जीवन की नश्वरता और अहंकार की व्यर्थता को दर्शाता है।


साखी 3: तीरथ गए से एक फल...

भावार्थ: तीर्थयात्रा करने से एक पुण्य फल मिलता है, संतों से मिलने पर चार फल मिलते हैं, लेकिन सतगुरु की सेवा करने से अनगिनत (अनंत) फल प्राप्त होते हैं।

  संदेश: सतगुरु का महत्व धार्मिक कर्मकांडों और यात्राओं से बहुत अधिक है।


साखी 4: सतगुरु की महिमा अनंत...

 भावार्थ: सच्चे गुरु की महिमा असीम है, उनका उपकार भी असीम है। उन्होंने मेरे अनंत ज्ञान रूपी नेत्र खोल दिए, जिससे मुझे अनंत प्रभु के दर्शन हुए।

 संदेश: गुरु ही मोक्ष या आत्मज्ञान का मार्ग दिखाते हैं।


साखी 5: सतगुरु सवां कोई सगा...

 भावार्थ: सच्चा गुरु जैसा कोई सगा संबंधी नहीं है, और हरि (ईश्वर) जैसा कोई सच्चा दाता (दान देने वाला) नहीं है।

 संदेश: ईश्वर और गुरु का संबंध ही सबसे पवित्र और सच्चा है।


साखी 6: अंखड़ियाँ झांई परी...

  भावार्थ: प्रभु की बाट जोहते-जोहते मेरी आँखों के नीचे झाइयाँ (अंधेरा) पड़ गया है, और राम-राम पुकारते-पुकारते मेरी जीभ में छाले पड़ गए हैं।

  संदेश: यह ईश्वर के प्रति गहन वियोग (जुदाई) और अटूट प्रेम को दर्शाता है।


साखी 7: सबै रसाइन मैं किया...

  भावार्थ: मैंने संसार के सभी रसायन (जादू या नुस्खे) करके देख लिए, लेकिन हरि-रस (ईश्वर के प्रेम) जैसा कोई रसायन नहीं है। यदि इसका ज़रा-सा भी अंश शरीर में प्रवेश कर जाए, तो सारा शरीर सोने की तरह पवित्र हो जाता है।

  संदेश: संसार के सुखों से बड़ा आनंद ईश्वर भक्ति में है।


साखी 8: तूं तूं करता तूं भया...

  भावार्थ: मैं निरंतर 'तू' (ईश्वर) का जाप करते-करते स्वयं 'तू' (ईश्वर) जैसा हो गया हूँ। मेरे अंदर का 'मैं' (अहंकार) अब बाकी नहीं रहा। अब जहाँ भी देखता हूँ, बस 'तू' ही दिखाई देता है।

  संदेश: अहंकार का नाश और आत्मा का परमात्मा से अद्वैत (एक हो जाना)


साखी 9: मन मथुरा दिल द्वारिका...

  भावार्थ: मन ही मथुरा है, हृदय ही द्वारका है, और यह काया ही काशी है। शरीर के भीतर जो 'दसवाँ द्वार' (ब्रह्मरंध्र/ज्ञान-चक्र) है, वही सच्चा मंदिर है, जहाँ परमात्मा की ज्योति को पहचाना जा सकता है।

  संदेश: तीर्थ बाहर नहीं, बल्कि मनुष्य के शरीर के भीतर स्थित हैं।


साखी 10: हेरत हेरत हे सखी...

  भावार्थ: हे सखी, ईश्वर को ढूँढ़ते-ढूँढ़ते मैं स्वयं ही विलीन हो गई, जैसे बूँद समुद्र में समा जाती है और फिर उसे अलग से ढूँढ़ा नहीं जा सकता।

  संदेश: जीव आत्मा का परमात्मा में पूर्ण विलय ही मोक्ष है।


साखी 11: जाकै मुंह माथा नहीं...

  भावार्थ: जिसका तो कोई मुख है, कोई माथा और ही कोई रूप (सुंदर या कुरुप), वह परमात्मा फूल की सुगंध से भी ज़्यादा सूक्ष्म और अनुपम है।

  संदेश: यह कबीर के निर्गुण निराकार ब्रह्म (फॉर्मलेस गॉड) का वर्णन है।



 बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs)

प्र. 1. 'माटी का एक नाग बनाके' पंक्ति में कबीर किस पर प्रहार करते हैं?

A) मूर्ति पूजा पर

B) गुरु की महिमा पर

C) धार्मिक पुस्तकों पर

D) साधु-संतों पर

उत्तर: A) मूर्ति पूजा पर


प्र. 2. कुम्हार को कौन रौंदने की बात करता है?

A) कुमार स्वयं

B) मिट्टी

C) गुरु

D) लोग

उत्तर: B) मिट्टी


प्र. 3. तीर्थयात्रा से कबीर को कितने फल प्राप्त होते हैं?

A) अनंत

B) चार

C) एक

D) कोई नहीं

उत्तर: C) एक


प्र. 4. 'सतगुरु की महिमा अनंत' में 'अनंत' का क्या अर्थ है?

A) जिसकी सीमा हो

B) जिसका अंत हो

C) जो ज्ञात हो

D) जो छोटा हो

उत्तर: B) जिसका अंत हो


प्र. 5. 'अंखड़ियाँ झांई परी' का भाव क्या है?

A) आँखें ख़राब होना

B) प्रभु के इंतज़ार में थक जाना

C) नींद आना

D) काजल लगाना

उत्तर: B) प्रभु के इंतज़ार में थक जाना


प्र. 6. कबीर ने सबसे बड़ा रसायन किसे माना है?

A) सोना बनाने की विधि को

B) राम रस (हरि भक्ति) को

C) सांसारिक सुखों को

D) धन को

उत्तर: B) राम रस (हरि भक्ति) को


प्र. 7. 'तूं तूं करता तूं भया' में 'मैं' के नष्ट होने का अर्थ है:

A) शरीर का नष्ट होना

B) अहंकार (Ego) का नष्ट होना

C) नाम का नष्ट होना

D) सांसारिक मोह का नष्ट होना

उत्तर: B) अहंकार (Ego) का नष्ट होना


प्र. 8. कबीर के अनुसार शरीर में 'काशी' क्या है?

A) मन

B) दिल

C) काया (शरीर)

D) दसवाँ द्वार

उत्तर: C) काया (शरीर)


प्र. 9. 'बूँद समांानी समुंद मैं' का आध्यात्मिक अर्थ है:

A) बारिश होना

B) जीवात्मा का परमात्मा में मिलना

C) बूँद का नष्ट होना

D) समुद्र का विस्तार

उत्तर: B) जीवात्मा का परमात्मा में मिलना


प्र. 10. कबीर का ईश्वर कैसा है?

A) रूप और माथे वाला

B) पुष्प की सुगंध से भी सूक्ष्म

C) कुरुप और क्रोधी

D) केवल पत्थर की मूर्ति

उत्तर: B) पुष्प की सुगंध से भी सूक्ष्म


 प्रश्न:11.  कबीर ने पहली साखी ('माटी का एक नाग बनाके...') में समाज के किस दोष पर व्यंग्य किया है?

    सही उत्तर: धर्म के नाम पर पाखंड और आडंबर

  प्रश्न:12. दूसरी साखी में 'माटी कहे कुमार से, तू क्या रौंदे मोहे' में 'माटी' किसका प्रतीक है?

    सही उत्तर: मानव शरीर की नश्वरता का

  प्रश्न:13. कबीर के किस कथन में 'विरह-वेदना' (ईश्वर से बिछड़ने की पीड़ा) का भाव सबसे अधिक मुखर है?

    सही उत्तर: अंखड़ियाँ झांई परी, राम पुकारि पुकारि

  प्रश्न:14. कबीर दास के निर्गुण ब्रह्म का स्वरूप कैसा है?

    सही उत्तर: अदृश्य, रूपहीन और अत्यंत सूक्ष्म

  प्रश्न:15. तीसरी साखी के अनुसार, सतगुरु के मिलने से कबीर को कितने फल प्राप्त हुए?

    सही उत्तर: अनंत फल

  प्रश्न:16. तीसरी साखी के अनुसार, संत (Saint) के मिलने से कितने फल प्राप्त होते हैं?

    सही उत्तर: चार फल

  प्रश्न:17. चौथी साखी में 'लोचन अनंत उघारिया' से कबीर का क्या अभिप्राय है?

    सही उत्तर: ज्ञान या दिव्य दृष्टि प्राप्त करना

  प्रश्न:18. कबीर के अनुसार, सच्चा 'सगा' (रिश्तेदार) और सच्चा 'दाति' (दाता) कौन है?

    सही उत्तर: सतगुरु और हरि (ईश्वर)

  प्रश्न:19. 'सतगुरु सबा कोई सगा, सोधी साईं दाति' में 'दाति' शब्द का सटीक अर्थ क्या है?

    सही उत्तर: दाता (दान देने वाला)

  प्रश्न:20. 'तूं तूं करता तूं भया, मुझमें रही हूँ' किस आध्यात्मिक सिद्धांत की ओर संकेत करती है?

    सही उत्तर: अद्वैतवाद (Non-dualism) या पूर्ण समर्पण

  प्रश्न:21. 'बूँद समांानी समुंद मैं, सो कत हेरी जाइ' में 'बूँद' किसका प्रतीक है?

    सही उत्तर: जीवात्मा (Individual Soul) का

  प्रश्न:22. साखी 'हेरत हेरत हे सखी, रहा कबीर हिराइ' में कबीर के 'हिराइ' जाने का क्या अर्थ है?

    सही उत्तर: ईश्वर की खोज में अपनी पहचान खो देना

  प्रश्न:23. कबीर के अनुसार, ईश्वर ('जाकै मुंह माथा नहीं') की सही पहचान क्या है?

    सही उत्तर: वह फूल की सुगंध से भी अधिक सूक्ष्म है।

  प्रश्न:24. साखी 'अंखड़ियाँ झांई परी, पंथ निहारि निहारि' में 'झांई परी' का प्रतीकात्मक अर्थ क्या है?

    सही उत्तर: ईश्वर के विरह में व्याकुलता और थकान

  प्रश्न:25. सातवीं साखी में 'हरि-रस' को किससे बेहतर 'रसाइन' बताया गया है?

    सही उत्तर: सभी सांसारिक अलौकिक वस्तुओं से

  प्रश्न:26. 'रंचक घट मैं संचरै, तौ सब तन कंचन होइ' में 'कंचन' किसका प्रतीक है?

    सही उत्तर: शुद्धता और पवित्रता का

  प्रश्न:27. साखी 'पुहुप बास तै पातरो, ऐसा तत अनूप' में 'पुहुप बास' का क्या अर्थ है?

    सही उत्तर: फूल की सुगंध

  प्रश्न:28. 'मन मथुरा दिल द्वारिका, काया कासी जाँणि' में कबीर ने तीर्थयात्रा को कहाँ स्थापित किया है?

    सही उत्तर: मानव शरीर के भीतर

  प्रश्न:29. कबीर ने 'दसवाँ द्वारा' किसे कहा है?

    सही उत्तर: ब्रह्मरंध्र या सहस्रार चक्र

  प्रश्न:30. 'दसवां द्वारा देहुरा, तामे जोति पिछाँनि' में 'देहुरा' शब्द का क्या तात्पर्य है?

    सही उत्तर: मंदिर/देवस्थान

प्रश्न:31. साखी 'अंखड़ियाँ झांई परी, पंथ निहारि निहारि...' में कौन सा रस (भाव) प्रमुख है?

    सही उत्तर: वियोग श्रृंगार रस (या शांत रस, विरह-वेदना के कारण)

 प्रश्न:32. साखी 'माटी कहे कुमार से, तू क्या रौंदे मोहे...' में कौन सा अलंकार (Figure of Speech) है?

    सही उत्तर: मानवीकरण अलंकार (माटी का मनुष्य की तरह बात करना)

 प्रश्न:33. साखी 'तूं तूं करता तूं भया...' में किस अलंकार का प्रयोग हुआ है?

    सही उत्तर: पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार (तूं शब्द की पुनरावृत्ति) और अद्वैत भाव

  प्रश्न:34. कबीर की इन साखियों में मुख्य रूप से कौन सी भाषा या बोली का प्रयोग हुआ है?

    सही उत्तर: सधुक्कड़ी (पंचमेल खिचड़ी) भाषा (जिसमें राजस्थानी, पंजाबी, खड़ी बोली और ब्रज भाषा का मिश्रण है)





पद


झगरा एक निरबेहु राम । 
जे तुम्ह अपनै जन सौं काम ।
 ब्रह्मां बड़ा कि जिन रे उपाया। वेद बड़ा कि जहाँ तैं आया ।
 यह मन बड़ा कि जेहिं मन मांनै। राम बड़ा कि रामहिं जानै ।
 कहै कबीर हौं भया उदास। तीरथ बड़ा कि हरि का दास ।


चला हंसा वा देस जहँ पिया बसै चितचोर
सुरत सोहागिन है पनिहारिन भरै ठाढ़ बिन डोर
बहि देसवाँ बादर ना उमड़ै रिम-झिम बरसै मेह
चौबारे में बैठ रहो ना जा भीजहु निर्देह
बहि देसवा नित्त पुर्निमा कबहुँ न होय अँधेर
एक सुरज कै कबन बतावै कोटिन सूरज उँजेर


ना जानै साहब कैसा है।
मुल्ला होकर बाँग जो दैवे,
क्या तेरा साहब बहरा है।
कीड़ी के पग नेवर बाजे
सो भी साहब सुनता है।
माला फेरी तिलक लगाया,
लंबी जटा बढ़ाता है।
अंतर तेरे कुफर-कटारी,
यो नहिं साहब मिलता है।


शब्दार्थ (Word Meanings in Hindi)

झगरा:     विवाद, बहस, लड़ाई

निरबेहूँ:     निर्वाह करना, निभाना

जन: व्यक्ति, लोग

सौं काम: से काम, से मतलब

ब्रह्मा बड़ा कि जिन रे उपाया: ब्रह्मा (सृष्टिकर्ता) बड़ा या जिसने उसे बनाया

बेद: वेद (धार्मिक ग्रंथ)

जहांँ तैं आया: जहाँ से वह आया है (उस परम सत्ता से)

जिहिं मन माँनै: जिससे मन संतुष्ट हो जाए

राम बड़ा कि रामहिं जानै: राम बड़ा या वह जो राम के बारे में जानता है (भक्त)

उदास:     विरक्त, तटस्थ, उदासीन

तीरथ: तीर्थ (तीर्थयात्रा)

हरि को दास: ईश्वर का सेवक (भक्त)

चला हंसा:     हंस (आत्मा) चला गया

वा देस:     उस देश में (परमधाम)

पिया:     प्रियतम (ईश्वर)

चितचोर:     मन को चुराने वाला (ईश्वर)

सुरत:     ध्यान, चेतना

सोहागिन:     सौभाग्यशालिनी, विवाहित स्त्री

पनिहारिन:     पानी भरने वाली स्त्री

ठाढ़ बिन डोर:    बिना रस्सी के खड़ा होना

बहै:                     बहना

देसवाँ:             देश में, धरती पर

बादल:              मेघ

उमँहै:             उमड़ना, छा जाना

रिम-झिम:         हल्की वर्षा

मेह:                 वर्षा

चौबारे:             घर का ऊपरी कमरा

भीजिहूँ:             भीगना

निरदेह:             निःदेह, बिना शरीर के, निश्चित रूप से

पूरणिमा:            पूर्णिमा (पूरे चाँद वाली रात)

कबहूँ:                कभी भी

अँधारे:                अंधेरा

सूरज:                 सूर्य

कवन:                 कौन सा

बतावै:                 बताना

कोटिन:                करोड़ों

दैनर:                    देने वाला

साहेब:                 मालिक, ईश्वर

मुल्ला:                 मुस्लिम पुजारी, मस्जिद का सेवक

बांग जो देवे:        अजान देना (प्रार्थना के लिए पुकार)

बहिरा:                 बहरा

कौड़ी के पग नेउर बाजे:     कौड़ियों के साथ पैर में घुँघरू बजते हैं

सो भी:                 वह भी

सुनता है:             सुनता है

माला फेरि:         माला जपना

तिलक:               माथे पर लगाया जाने वाला चिह्न

जटा:                   लंबे बाल

अंतर:                 मन के भीतर

कुफर:               अधर्म, नास्तिकता

कटारी:              छुरी

यो: यह



पदों का सारांश (Summary of the Stanzas)


यह पद कबीर दास जी के हैं, जिनमें उन्होंने धर्म के आडंबरों का खंडन करते हुए भक्ति और अध्यात्म के महत्व पर ज़ोर दिया है।


 प्रथम पद (धार्मिक आडंबरों पर प्रश्न): कबीर कहते हैं कि वे केवल निष्काम राम को ही निभाना चाहते हैं, जो सांसारिक झगड़ों से परे हैं। वे धार्मिक मान्यताओं और श्रेष्ठता पर प्रश्न उठाते हैं—ब्रह्मा बड़ा है या उसका निर्माता? राम बड़ा है या उसका ज्ञानी भक्त? वे अंत में कहते हैं कि वे तीर्थों से ज़्यादा हरि के दास (भक्त) को महत्व देते हैं, क्योंकि उनका मन इन झगड़ों से उदास है।



  द्वितीय पद (आत्मा और परमात्मा): यहाँ कबीर आत्मा (हंस) और परमात्मा (पिया चितचोर) के मिलन को दर्शाते हैं। वे कहते हैं कि हंस उस परमधाम को चला गया जहाँ प्रियतम चितचोर है। वे सहज योग की अवस्था बताते हैं जहाँ ध्यान (सुरत) रूपी सोहागिन बिना रस्सी के खड़े होकर पानी भरने वाली पनिहारिन की तरह है। वे आंतरिक ज्ञान को महत्व देते हैं, कहते हैं कि वहाँ बिना बादलों के वर्षा होती है, और बिना शरीर के भीगी हुई आत्मा चौबारे में रहती है। वे उस परम प्रकाश की बात करते हैं, जहाँ एक सूरज के बताने पर करोड़ों सूरज प्रकाश देने लगते हैं।


 तृतीय पद (ईश्वर की सर्वव्यापकता और आडंबरों का खंडन): कबीर मूर्तिपूजा, अजान, माला जपने जैसे बाहरी आडंबरों पर प्रहार करते हैं। वे मुल्ला से पूछते हैं कि क्या उनका साहेब (ईश्वर) बहरा है कि उन्हें ऊँची आवाज़ में अजान देनी पड़ती है। वे कहते हैं कि ईश्वर तो कौड़ियों के साथ पग में बजने वाले छोटे घुँघरू की आवाज़ भी सुनता है। वे उन लोगों पर कटाक्ष करते हैं जो बाहर से माला फेरते हैं, तिलक लगाते हैं और लंबी जटाएँ बढ़ाते हैं, लेकिन जिनके मन के भीतर अधर्म (कुफर) की कटारी होती है। कबीर कहते हैं कि ईश्वर ऐसे पाखंडी लोगों को नहीं मिलता है।



पदवार सारांश (Stanzawise Summary)


पद १ (झगरा एक निरबेहूँ राम...)

कबीरदास जी कहते हैं कि उन्हें सांसारिक झगड़ों से कोई लेना-देना नहीं है; वे केवल निष्काम राम को ही जानते हैं। वे धार्मिक श्रेष्ठता के विवादों पर सवाल उठाते हैं: सृष्टिकर्ता ब्रह्मा बड़ा है या जिसने ब्रह्मा को बनाया वह परमशक्ति? वेद बड़ा है या उसका उद्गम स्थान? राम बड़ा है या राम को जानने वाला उसका ज्ञानी भक्त? कबीर कहते हैं कि वे इन विवादों से विरक्त (उदास) हैं और उनके लिए तीर्थों की यात्रा से कहीं ज़्यादा महत्त्व हरि के दास (सच्चे भक्त) का है, क्योंकि सच्चा भक्त ही उनके मन को संतुष्टि देता है।



पद २ (चला हंसा वा देस जहाँ पिया चितचोर...)

इस पद में रहस्यवाद का भाव है। कबीर कहते हैं कि आत्मा (हंस) उस परमधाम को चली गई है जहाँ उसका प्रियतम ईश्वर (चितचोर) वास करता है। वहाँ चेतना (सुरत) रूपी सौभाग्यशालिनी, बिना किसी सहारे या रस्सी के, एक पनिहारिन की तरह स्थिर खड़ी है। वहाँ बिना बादलों के ही रिमझिम वर्षा होती है और बिना शरीर के (निदेह) भी आत्मा (चौबारे में बैठी) भीग जाती है। कबीर उस परम ज्ञान के प्रकाश का वर्णन करते हैं, जहाँ अंधकार (अँधेर) कभी नहीं होता, और जहाँ एक सूर्य का ज्ञान होने पर करोड़ों सूर्यों का प्रकाश देने वाला मिल जाता है।


पद ३ (ना जाने साहेब कैसा है, मुल्ला हो कर बांग जो देवे...)

कबीर धर्म के बाहरी आडंबरों पर सीधा कटाक्ष करते हैं। वे पूछते हैं कि मुल्ला इतनी ऊँची आवाज़ में अजान (बांग) क्यों देता है, क्या उसका साहेब (ईश्वर) बहरा है? वे कहते हैं कि ईश्वर इतना संवेदनशील है कि वह पैरों में बँधी कौड़ियों के साथ बजने वाले छोटे-से घुँघरू की आवाज़ भी सुन लेता है। फिर वे पाखंडी भक्तों पर प्रहार करते हैं जो बाहर से माला फेरते हैं, माथे पर तिलक लगाते हैं और लंबी जटाएँ रखते हैं, लेकिन जिनके हृदय में कुफ्र (अधर्म, नास्तिकता) रूपी कटारी छिपी होती है। कबीर कहते हैं कि ऐसे पाखंड से ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती है।




कबीर के पदों पर आधारित MCQs


१. कबीर ने 'झगरा एक निरबेहूँ राम' कहकर किस बात पर ज़ोर दिया है?

A. केवल राम नाम का उच्चारण करने पर।

B. धार्मिक विवादों को महत्व देने पर।

C. सांसारिक और धार्मिक झगड़ों से दूर रहकर निष्काम भक्ति पर।

Ans. C. सांसारिक और धार्मिक झगड़ों से दूर रहकर निष्काम भक्ति पर।


२. पद के अनुसार, कबीर का मन क्यों उदास है?

A. ईश्वर से दूर होने के कारण।

B. जीवन में कष्टों के कारण।

C. 'ब्रह्मा बड़ा कि जिन रे उपाया' जैसे धार्मिक श्रेष्ठता के विवादों के कारण।

Ans. C. 'ब्रह्मा बड़ा कि जिन रे उपाया' जैसे धार्मिक श्रेष्ठता के विवादों के कारण।


३. कबीर के अनुसार, किससे मन संतुष्ट होता है?

A. तीरथ करने से।

B. सच्चे भक्त (रामहिं जानै/हरि का दास) से।

C. वेद पढ़ने से।

D. ऊँचा पद प्राप्त करने से।

Ans. B. सच्चे भक्त (रामहिं जानै/हरि का दास) से।


४. 'अंतर तेरे कुफर-कटारी' किस प्रकार के लोगों पर व्यंग्य करता है?

A. जो धर्म पर विश्वास नहीं करते।

B. जो ऊँची आवाज़ में प्रार्थना करते हैं।

C. जो बाहरी दिखावा (माला, तिलक, जटा) करते हैं पर मन में पाखंड रखते हैं।

D. जो दान-पुण्य नहीं करते।

Ans. C. जो बाहरी दिखावा (माला, तिलक, जटा) करते हैं


५. 'हंसा' किसका प्रतीक है, जो 'वा देस' को चला गया है?

A. साधक का शरीर।

B. जीवात्मा।

C. एक पक्षी।

D. मुल्ला।

Ans. B. जीवात्मा।


६. दूसरे पद में 'पिया चितचोर' किसे कहा गया है?

A. गुरु को।

B. साधु को।

C. परमात्मा (ईश्वर) को।

D. सांसारिक प्रियतम को।

Ans. C. परमात्मा (ईश्वर) को।


७. 'सुरत सोहागिन पनिहारिन ठाढ़ बिन डोर' में 'सुरत सोहागिन' किसका प्रतीक है?

A. पानी भरने वाली स्त्री।

B. सहज, स्थिर और ध्यानमग्न चेतना का।

C. सौभाग्यशालिनी पत्नी का।

D. योग की एक विशेष क्रिया का।

Ans. B. सहज, स्थिर और ध्यानमग्न चेतना का।


८. 'बहै देसवाँ बादर ना उमँहै रिम-झिम बरसे मेह' में किस अनुभव का वर्णन है?

A. बरसात के मौसम का।

B. आंतरिक और आत्मिक आनंद (ज्ञान वर्षा) का।

C. बाहरी दुनिया की उपेक्षा का।

D. चौबारे में बैठने का।

Ans. B. आंतरिक और आत्मिक आनंद (ज्ञान वर्षा) का।


९. 'चौबारे में बैठ रहौ ना जा भीजिहूँ निरदेह' में 'निरदेह' शब्द का क्या तात्पर्य है?

A. शरीर के बिना।

B. निश्चित रूप से/निःसंदेह।

C. बिना किसी इच्छा के।

D. बिना किसी वस्त्र के।

Ans. B. निश्चित रूप से/निःसंदेह।


१०. कबीर ने 'मुल्ला हो कर बांग जो देवे, क्या तेरा साहेब बहिरा है?' कहकर किस बात पर प्रहार किया है?

A. प्रार्थना न करने पर।

B. मुल्ला की आवाज़ पर।

C. ईश्वर को ऊँची आवाज़ से पुकारने की आवश्यकता पर।

D. मस्जिद में जाने पर।

Ans. C. ईश्वर को ऊँची आवाज़ से पुकारने की आवश्यकता पर।


११. कबीर के अनुसार ईश्वर कितना संवेदनशील है?

A. वह केवल ऊँची आवाज़ सुनता है।

B. वह केवल ज्ञानी की बात सुनता है।

C. वह कौड़ी के पग में बजने वाले छोटे घुँघरू की आवाज़ भी सुनता है।

D. वह केवल मंत्रों का उच्चारण सुनता है।

Ans. C. वह कौड़ी के पग में बजने वाले छोटे घुँघरू की आवाज़ भी सुनता है।


१२. 'माला फेरि तिलक लगाया, लम्बा जटा बढ़ाता है' के माध्यम से कबीर किस बात की आलोचना करते हैं?

A. साधुओं की वेशभूषा की।

B. केवल धर्मग्रंथ पढ़ने की।

C. धार्मिक बाहरी दिखावे और वेशभूषा की।

D. लंबे बाल रखने की।

Ans. C. धार्मिक बाहरी दिखावे और वेशभूषा की।


१३. 'कोटिन सूरज दैनर' में किस अलंकार का प्रयोग हुआ है?

A. उपमा

B. रूपक

C. अतिशयोक्ति

D. अनुप्रास

Ans. C. अतिशयोक्ति


१४. 'ब्रह्मा बड़ा कि जिन रे उपाया' में 'उपाया' शब्द का अर्थ है:

A. उपासना करना।

B. उत्पन्न किया/पैदा किया।

C. उपदेश देना।

D. उपाधि देना।

Ans. B. उत्पन्न किया/पैदा किया।


१५. पद में 'पनिहारिन' शब्द किस भाषा/बोली से आया है?

A. संस्कृत

B. फ़ारसी

C. अवधी/भोजपुरी (कबीर की सधुक्कड़ी भाषा)

D. उर्दू

Ans. C. अवधी/भोजपुरी (कबीर की सधुक्कड़ी भाषा)


१६. कबीर ने किसे 'तीरथ' से बड़ा माना है?

A. ब्रह्म को।

B. हरि के दास को।

C. वेद को।

D. मन को।

Ans. B. हरि के दास को।


१७. 'पूरणिमा कबहूँ न होय अँधारे' किस बात का संकेत देता है?

A. दिन के प्रकाश का।

B. परमधाम में शाश्वत ज्ञान के प्रकाश का।

C. अँधेरा दूर करने का।

D. अमावस्या का।

Ans. B. परमधाम में शाश्वत ज्ञान के प्रकाश का।


१८. 'राम बड़ा कि रामहिं जानै' में कबीर किसे महत्त्व दे रहे हैं?

A. राम नाम को।

B. राम की शक्ति को।

C. राम को जानने वाले ज्ञानी भक्त को।

D. राम की कथा को।

Ans. C. राम को जानने वाले ज्ञानी भक्त को।


१९. कबीर के पदों की भाषा क्या कहलाती है?

A. ब्रजभाषा

B. अवधी

C. खड़ी बोली

D. सधुक्कड़ी/पंचमेल खिचड़ी

Ans. D. सधुक्कड़ी/पंचमेल खिचड़ी


२०. 'क्या तेरा साहेब बहिरा है' में निहित व्यंग्य क्या है?

A. ईश्वर की सर्वव्यापकता और संवेदनशीलता की स्थापना करना।

B. मुल्ला को नीचा दिखाना।

C. आवाज़ धीमी करने के लिए कहना।

D. शोर मचाने से रोकना।

Ans. A. ईश्वर की सर्वव्यापकता और संवेदनशीलता की स्थापना करना।



 

 


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