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Showing posts from December, 2025

मैं नीर भरी दुख की बदली— महादेवी वर्मा Summary, Explanation, Word meanings, MCQs, Class 12 Semester 3

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   मैं नीर भरी दुख की बदली                                                         — महादेवी वर्मा Summary, Explanation, Word meanings, MCQs, Class 12 Semester 3 मैं नीर भरी दुख की बदली ! स्पन्दन में चिर निःस्पन्द बसा क्रन्दन में आहत विश्व हँसा नयनों में दीपक से जलते, पलकों में निसृणी मचली ! मेरा पग-पग संगीत भरा श्वासों से स्वप्न-पराग झरा नभ के नव रंग बुनते दुकुल छाया में मलय-वयार पली । मैं क्षितिज-भ्रुकुटि पर घिर धूमिल चिन्ता का भार बनी अविरल, रज-कण पर जल-कण हो बरसी, नव जीवन-अंकुर बन निकली ! पथ को न मलिन करता आना पद-चिह्न न दे जाता जाना सुधि मेरे आगम की जग में सुख की सिहरन बन अन्त खिली ! विस्तूत नभ का कोई कोना मेरा न कभी अपना होना, परिचय इतना, इतिहास यही- उड़ी कल थी, मिट आज चली !

शरत् सुन्दरी' ~ सुमित्रानंदन पंत, Summary, Explanation, Word meanings, MCQs, Class 12 Semester 3

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     ' शरत् सुन्दरी' ~ सुमित्रानंदन पंत Summary, Explanation, Word meanings, MCQs, Class 12 Semester 3 ' शरत् सुन्दरी' ~ सुमित्रानंदन पंत गुच्छ कांस का किया विनिर्मित शेफाली का हार बनाया नए धान की मंजरियों से है पूजा का थाल सजाया शरत् सुंदरी। तेरे स्वागत के मिस की मैं ने तैयारी रथ पर बैठ शुभ्र, मेघों के तू आ, मैं तुझ पर बलिहारी शिशिर ओस से भींग गए जो उन कमलों का मुकुट पहन कर निर्मल नीलपंथ से आ तू वन प्रांतर में नव यौवन भर मालति के फूलों का आसन सघन कुंज बिच गया बिछाया उफनाती गंगा के तट पर तब तुझ को जा रहा बुलाया राजहंस पथ निरख रहे हैं पथ पर अपने पंख बिछाए पता नहीं किस ने निज वीणा पर स्वर मादकमधुर बजाए निज अलकों की कृपाकोर से मेरे मन को पारस कर दे मेरे तिमिराच्छन्न हृदय में तू नव ज्योति, ऊष्मा भर दे

'केवट प्रसंग' Summary, Explanation, Word meanings, MCQs, Class 12 Semester 3

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'केवट प्रसंग' जासु बियोग बिकल पसु ऐसें। प्रजा मातु पितु जिइहहिं कैसें॥ बरबस राम सुमंत्रु पठाए। सुरसरि तीर आपु तब आए॥1॥ मागी नाव न केवटु आना। कहइ तुम्हार मरमु मैं जाना॥ चरन कमल रज कहुँ सबु कहई। मानुष करनि मूरि कछु अहई॥2॥ छुअत सिला भइ नारि सुहाई। पाहन तें न काठ कठिनाई॥ तरनिउ मुनि घरिनी होइ जाई। बाट परइ मोरि नाव उड़ाई॥3॥ एहिं प्रतिपालउँ सबु परिवारू। नहिं जानउँ कछु अउर कबारू॥ जौं प्रभु पार अवसि गा चहहू। मोहि पद पदुम पखारन कहहू॥4॥ छन्द : पद कमल धोइ चढ़ाइ नाव न नाथ उतराई चहौं। मोहि राम राउरि आन दसरथसपथ सब साची कहौं॥ बरु तीर मारहुँ लखनु पै जब लगि न पाय पखारिहौं। तब लगि न तुलसीदास नाथ कृपाल पारु उतारिहौं॥ सोरठा : सुनि केवट के बैन प्रेम लपेटे अटपटे। बिहसे करुनाऐन चितइ जानकी लखन तन॥ चौपाई : कृपासिंधु बोले मुसुकाई। सोइ करु जेहिं तव नाव न जाई॥ बेगि आनु जलपाय पखारू। होत बिलंबु उतारहि पारू॥1॥ जासु नाम सुमिरत एक बारा। उतरहिं नर भवसिंधु अपारा॥ सोइ कृपालु केवटहि निहोरा। जेहिं जगु किय तिहु पगहु ते थोरा॥2॥ पद नख निरखि देवसरि हरषी। सुनि प्रभु बचन मोहँ मति करषी॥ केवट राम रजायसु पावा। पानि कठवता भर...

दोहावली (तुलसीदास), Summary, Explanation, Word meanings, MCQs, Class 12 Semester 3

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    दोहावली (तुलसीदास)  राम नाम मनिदीप धरु, जीह देहरी द्वार।  'तुलसी' भीतर बाहेरौ, जौं चाहसि उजियार॥  राम नाम कलि कामतरु, राम भगति सुरधेनु। सकल सुमंगल मूल जग, गुर पद पंकज रेनू॥  तुलसी स्वारथ मीत सब, परमार्थ रघुनाथ। हरषि चरहिं तापहिं बरैं, फरें पसारहिं हाथ॥  बैष बिसाद बोलति मधुर, मन कटु करम मलीन।  तुलसी राम नहिं पाइये, भएँ बिषय-जुर-जीन॥  कहा विभीषन ले मिल्यो, कहा दियो रघुनाथ।  तुलसी यह जाने बिना, मूढ़ मीजिहैं हाथ॥  केवट निसिचर बिहग मृग, साधु किये सब साथ तुलसी रघुबर की कृपा, सकल सुमंगल खाँत॥ ग्यान कहै अज्ञान बिनु, तम बिनु कहै प्रकास निरगुन कहै जो सगुन बिनु, गुरु बिनु तुलसीदास॥  नहिं जाचत नहिं संग्रहहिं, सीस न नावत लेइ।  ऐसे मानी मगनेहिं को, बारिद बिनु को देइ॥  चातक जीवन-दायकहिं, जीवन समयें सुरेति।  तुलसी अलख न लखि परै, चातक प्रीति प्रतीति॥  बध्यो बधिक पुनि पुन्य जल, उलटि उचाहैं चाँउ तुलसी चातक प्रेमपट, मरतहिं लगै न खोंव॥  तुलसी चातक सिख सुमति, सुरतिहिं बारह बार।  तात न तर्पन कीजिये, बिनु बारिधर धार॥...

Saakhi (साखी) , पद, ( संत कबीर दास जी ) Summary, Explanation, Word meanings, MCQs, Class 12 semester 3

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 Saakhi (साखी) Summary, Explanation, Word meanings, MCQs, Class 12 Semester 3  संत कबीर दास जी : जीवन और दर्शन ( विस्तारित ) कबीर दास जी : (अनुमानित 1398-1518 ई .) मध्यकालीन भारत के भक्ति आंदोलन के सबसे प्रमुख संत और कवि थे। उनकी रचनाएँ भारतीय आध्यात्मिकता , समाज सुधार और साहित्य का एक अमूल्य हिस्सा हैं। 1. निर्गुण भक्ति के प्रणेता    एक ईश्वरवाद : कबीर जी निर्गुण ब्रह्म ( ईश्वर का निराकार स्वरूप ) के उपासक थे। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि ईश्वर न मंदिर में है , न मस्जिद में , बल्कि हर प्राणी के हृदय में निवास करता है।    राम और रहीम की एकता : उनका दर्शन हिंदू और इस्लाम दोनों धर्मों की श्रेष्ठ बातों को मिलाता है। उन्होंने राम और रहीम को एक ही परम सत्ता के दो नाम माना और धार्मिक सद्भाव पर ज़ोर दिया।   2. सामाजिक क्रांति का स्वर    आडंबरों का खंडन : कबीर ने मूर्ति पूजा , तीर्थ यात्रा , व्रत - उपवास , माला फेरना और लंबी ...