दोहावली (तुलसीदास), Summary, Explanation, Word meanings, MCQs, Class 12 Semester 3
दोहावली (तुलसीदास)
राम नाम मनिदीप धरु, जीह देहरी द्वार।
'तुलसी' भीतर बाहेरौ, जौं चाहसि उजियार॥
राम नाम कलि कामतरु, राम भगति सुरधेनु।
सकल सुमंगल मूल जग, गुर पद पंकज रेनू॥
तुलसी स्वारथ मीत सब, परमार्थ रघुनाथ।
हरषि चरहिं तापहिं बरैं, फरें पसारहिं हाथ॥
बैष बिसाद बोलति मधुर, मन कटु करम मलीन।
तुलसी राम नहिं पाइये, भएँ बिषय-जुर-जीन॥
कहा विभीषन ले मिल्यो, कहा दियो रघुनाथ।
तुलसी यह जाने बिना, मूढ़ मीजिहैं हाथ॥
केवट निसिचर बिहग मृग, साधु किये सब साथ
तुलसी रघुबर की कृपा, सकल सुमंगल खाँत॥
ग्यान कहै अज्ञान बिनु, तम बिनु कहै प्रकास
निरगुन कहै जो सगुन बिनु, गुरु बिनु तुलसीदास॥
नहिं जाचत नहिं संग्रहहिं, सीस न नावत लेइ।
ऐसे मानी मगनेहिं को, बारिद बिनु को देइ॥
चातक जीवन-दायकहिं, जीवन समयें सुरेति।
तुलसी अलख न लखि परै, चातक प्रीति प्रतीति॥
बध्यो बधिक पुनि पुन्य जल, उलटि उचाहैं चाँउ
तुलसी चातक प्रेमपट, मरतहिं लगै न खोंव॥
तुलसी चातक सिख सुमति, सुरतिहिं बारह बार।
तात न तर्पन कीजिये, बिनु बारिधर धार॥
जड़ चेतन गुन-दोष बिधि, कीन्ह करतार।
संत हंस गुन गहहिं पय, परिहरि बारि बिकार॥
दोहावली (तुलसीदास)
प्रसंग (Context):
प्रस्तुत दोहे गोस्वामी तुलसीदास की ‘दोहावली’ से लिए गए हैं। इन दोहों में तुलसीदास मानव चरित्र, धर्म, सद्गुण, संत-संगति, गुरु-महिमा और दुष्ट-संगति के दुष्परिणामों की शिक्षा देते हैं। वह समझाते हैं कि मनुष्य का वास्तविक सौंदर्य उसके आचरण, दया, सद्भाव और विवेक में है। लोभ, मोह, दुष्ट-संगति और झूठ मनुष्य के जीवन को नष्ट कर देते हैं, जबकि सत्संग, आत्मसंयम और गुरु-भक्ति जीवन को श्रेष्ठ बनाते हैं।
व्याख्या (Explanation):
इन दोहों में तुलसीदास कहते हैं कि लोभ, मोह, स्वार्थ और दुष्टों की संगति मनुष्य को कभी सुख नहीं दे सकती। लालची और स्वार्थी व्यक्ति स्वयं को ही दुख देता है। दुष्ट लोग चाहे कितनी भी मीठी भाषा बोलें, पर भीतर से वे दूसरों को हानि पहुँचाने का ही विचार रखते हैं। तुलसीदास चेतावनी देते हैं कि ऐसी संगति से बचना चाहिए।
वे यह भी बताते हैं कि गुरु-भक्ति और सत्संग मनुष्य के जीवन को प्रकाश से भर देता है। गुरु के बिना ज्ञान अंधकार में भटकने जैसा है।
संतों का स्वभाव हंस के समान होता है—वे बुराई छोड़कर केवल अच्छाई ग्रहण करते हैं।
दुष्ट का स्वभाव कौए जैसा होता है—वह केवल दोष ढूँढता है, गुण नहीं देखता।
इस प्रकार ये दोहे मनुष्य को उत्तम आचरण, दया, विनय, विवेक और सत्संग का महत्व बताते हैं।
भावार्थ (Bhavarth — सरल और सीधा अर्थ)
इन दोहों का समग्र भाव यह है कि मनुष्य का जीवन तभी श्रेष्ठ बनता है, जब वह लोभ-मोह, अहंकार, दुष्ट-संगति और स्वार्थ को त्यागकर गुरु-भक्ति, सत्संग, सत्य, संयम और सद्गुणों को अपनाता है। संत लोग दूसरों का भला करते हैं और बुराई को त्यागकर केवल गुणों को अपनाते हैं। दुष्ट और कपटी लोगों से बचकर रहना चाहिए, क्योंकि वे बाहरी मिठास के भीतर भी हानि छिपाए होते हैं। मनुष्य को हंस की तरह विवेकवान बनकर केवल अच्छाई को ग्रहण करना चाहिए।
दोहावली (तुलसीदास)
यह अंश भक्ति, ज्ञान, नीति और प्रेम के महत्व पर आधारित है। तुलसीदास जी ने राम-नाम के स्मरण, स्वार्थ-त्याग, गुरु की महिमा, याचक (मांगने वाले) के स्वाभिमान और चातक पक्षी के अनन्य प्रेम का वर्णन किया है।
व्याख्या सहित सारांश
इन दोहों में कवि तुलसीदास जी ने प्रमुखतः निम्नलिखित विषयों पर प्रकाश डाला है:
राम-नाम की महिमा: पहले दोहे में राम-नाम को मणिदीप (रत्न-जटित दीपक) बताकर उसे हृदय (मन) में स्थापित करने और जीभ (मुख) रूपी देहली (द्वार) पर रखने की सलाह दी गई है, जिससे भीतर और बाहर दोनों ओर उजाला हो जाए।
कलियुग में राम की शरण: कवि कहते हैं कि कलियुग में राम-नाम कल्पतरु के समान है और राम को छोड़कर भागने वाले राम-नाम की सुगंध को भोगते हैं। यह नाम सकल सुमंगल (सभी शुभ मंगल) और पुण्य का मूल है।
स्वार्थी मित्र और रघुनाथ का प्रेम: तुलसीदास जी स्वार्थी मित्रों से उपदेश या प्रेम की आशा रखने को व्यर्थ बताते हैं। वे कहते हैं कि राम का प्रेम ही सच्चा है, जो वैसी ही संपत्ति देता है जैसे विभीषण को बिना माँगे ही राम ने लंका का राज दे दिया था।
गुरु, साधु और ईश्वर की कृपा: गुरु, संत और ईश्वर की कृपा के बिना मनुष्य को न ज्ञान रूपी प्रकाश मिलता है और न ही आनंद की प्राप्ति होती है।
चातक का अनन्य प्रेम और स्वाभिमान: कवि चातक पक्षी के उदाहरण से अनन्य प्रेम और स्वाभिमान की शिक्षा देते हैं। चातक केवल स्वाति नक्षत्र की वर्षा का जल पीता है और वह केवल माँगता है, संग्रह नहीं करता, और न ही सिर झुकाता है। वह अपने जीवन को ही त्याग देता है, पर किसी अन्य जल से अपनी प्यास नहीं बुझाता।
संत और दुर्जन का विवेक: अंतिम दोहे में संत और दुर्जन के विवेक (बुद्धि) का अंतर बताया गया है। संत हंस के समान हैं जो गुण-दोष को पहचानकर केवल गुण (पय/दूध) को ग्रहण करते हैं और दोष (बिकार/पानी) को छोड़ देते हैं।
दोहे-वार सारांश (अर्थ)
| 1. |
राम नाम मनिदीप धरु, जीह देहरी द्वार।
'तुलसी' भीतर बाहेरौ, जौं चाहसि उजियार॥
शब्दार्थ (Word Meanings)
मनिदीप: मणिमय दीपक।
धरु: धारण करो/रखो।
जीह: जीभ।
देहरी: देहली/द्वार।
बाहरौ: बाहर भी।
उजियार: उजाला/प्रकाश।
भावार्थ (Explanation)
राम-नाम को मणि के दीपक के रूप में अपने हृदय में रखो और जीभ को द्वार बनाओ। हे तुलसी! यदि तुम भीतर और बाहर दोनों ओर प्रकाश (ज्ञान) चाहते हो तो ऐसा करो।
| 2. |
राम नाम कलि कामतरु, राम भगति सुरधेनु।
सकल सुमंगल मूल जग, गुर पद पंकज रेनू॥
शब्दार्थ (Word Meanings)
कलि: कलियुग
कामतरु: कल्पतरु (इच्छाएँ पूरी करने वाला वृक्ष)
सुरधेनु: कामधेनु (इच्छाएँ पूरी करने वाली गाय)
सकल सुमंगल: सभी शुभ मंगल।
पंकज रेनू: कमल रूपी चरणों की धूल
कलियुग में राम-नाम कल्पतरु के समान है और राम-भक्ति कामधेनु के समान है। इस जगत में सभी शुभ मंगलों का मूल गुरु के चरण कमलों की धूल है।
| 3. |
तुलसी स्वारथ मीत सब, परमार्थ रघुनाथ।
हरषि चरहिं तापहिं बरैं, फरें पसारहिं हाथ॥
शब्दार्थ (Word Meanings)
स्वारथ मीत: स्वार्थी मित्र
परमार्थ: सच्चा हितैषी
रघुनाथ: भगवान राम
चरहिं: चरते हैं/आनंद लेते हैं
तापहिं बरैं: जलते हैं
फरें: फल आने पर
भावार्थ (Explanation)
तुलसीदास कहते हैं कि सब स्वार्थ के साथी हैं, केवल रघुनाथ (राम) ही सच्चे हितैषी (परमार्थ) हैं। (जैसे वृक्ष के नीचे) स्वार्थी लोग खुशी से चरते हैं, जब पेड़ जलता है तो तापते हैं, और जब फल आते हैं तो हाथ फैलाते हैं (केवल लेने में तत्पर)।
| 4. |
बैष बिसाद बोलति मधुर, मन कटु करम मलीन।
तुलसी राम नहिं पाइये, भएँ बिषय-जुर-जीन॥
शब्दार्थ (Word Meanings)
बैष: विष/विषयरूपी रोग।
बिसाद: खेद/दुःख।
कटु: कड़वा।
मलीन: मैला/गंदा।
बिषय-जुर: विषय-वासना रूपी ज्वर (बुखार)
जीन: दुर्बल/पीड़ित।
भावार्थ (Explanation)
जब तक मन में विषय-वासना रूपी ज्वर लगा है, तब तक मनुष्य बाहर से मीठा बोलता है, पर उसका मन कड़वा और कर्म गंदे होते हैं। तुलसी कहते हैं कि ऐसे व्यक्ति को राम की प्राप्ति नहीं हो सकती।
| 5. |
कहा विभीषन ले मिल्यो, कहा दियो रघुनाथ।
तुलसी यह जाने बिना, मूढ़ मीजिहैं हाथ॥
शब्दार्थ (Word Meanings)
विभीषन: विभीषण
मीजिहैं हाथ: हाथ मलेंगे/पछताएँगे
मूढ़: मूर्ख
भावार्थ (Explanation)
विभीषण ने राम से क्या माँगा और रघुनाथ ने उन्हें क्या दिया (लंका का राज्य बिना माँगे)? तुलसीदास कहते हैं कि इस सत्य को जाने बिना, मूर्ख लोग अंत में पछताते (हाथ मलते) रह जाएँगे।
| 6. |
केवट निसिचर बिहग मृग, साधु किये सब साथ
तुलसी रघुबर की कृपा, सकल सुमंगल खाँत॥
शब्दार्थ (Word Meanings)
केवट: नाव चलाने वाला
निसिचर: राक्षस
बिहग: पक्षी
मृग: पशु
खाँत: खान/भंडार
भावार्थ (Explanation)
केवट (निषादराज), राक्षस (विभीषण), पक्षी (जटायु) और पशु (जैसे वानर) - सभी को रघुबर (राम) ने साधु (पवित्र) बनाकर अपने साथ कर लिया। तुलसी कहते हैं कि रघुबर की कृपा सभी शुभ मंगलों का भंडार है।
| 7. |
ग्यान कहै अज्ञान बिनु, तम बिनु कहै प्रकास
निरगुन कहै जो सगुन बिनु, गुरु बिनु तुलसीदास॥
शब्दार्थ (Word Meanings)
ग्यान: ज्ञान
अज्ञान बिनु: अज्ञान के बिना
तम: अंधकार
प्रकास: प्रकाश
निरगुन: निर्गुण
सगुन बिनु: सगुण के बिना
भावार्थ (Explanation)
तुलसीदास कहते हैं कि जो अज्ञान के बिना ज्ञान, अंधकार के बिना प्रकाश, और सगुण के बिना निर्गुण (ब्रह्म) की बात करता है, वह सब गुरु के बिना कहना व्यर्थ है (अर्थात् गुरु ही सत्य ज्ञान देता है)।
| 8. |
नहिं जाचत नहिं संग्रहहिं, सीस न नावत लेइ।
ऐसे मानी मगनेहिं को, बारिद बिनु को देइ॥
शब्दार्थ (Word Meanings)
जाचत: मांगना।
संग्रहहिं: संग्रह करना।
सीस न नावत: सिर नहीं झुकाते।
मानी: स्वाभिमानी।
मगनेहिं: याचक/माँगने वाला।
बारिद: बादल।
भावार्थ (Explanation)
जो माँगते नहीं, संग्रह नहीं करते, और लेते समय सिर नहीं झुकाते (अर्थात् माँगते नहीं, पर उनका स्वाभिमान ऐसा है); ऐसे स्वाभिमानी याचक को बादल के सिवा और कौन दे सकता है?
| 9. |
चातक जीवन-दायकहिं, जीवन समयें सुरेति।
तुलसी अलख न लखि परै, चातक प्रीति प्रतीति॥
शब्दार्थ (Word Meanings)
चातक: एक पक्षी जो केवल स्वाति नक्षत्र का जल पीता है।
जीवन-दायकहिं: जीवन देने वाले को (बादल)।
सुरेति: स्मरण/याद करना।
अलख: अदृश्य/लक्ष्य।
लखि परै: दिखाई देती है।
प्रतीति: विश्वास/श्रद्धा।
भावार्थ (Explanation)
चातक अपने जीवन-दाता (बादल) को सही समय पर (जीवन संकट में) ही याद करता है। तुलसी कहते हैं कि चातक का यह अदृश्य प्रेम (एकनिष्ठा) और श्रद्धा (केवल एक को ही चाहना) आसानी से समझ में नहीं आता।
| 10. |
बध्यो बधिक पुनि पुन्य जल, उलटि उचाहैं चाँउ
तुलसी चातक प्रेमपट, मरतहिं लगै न खोंव॥
शब्दार्थ (Word Meanings)
बध्यो: बँधा हुआ।
बधिक: शिकारी।
पुन्य जल: पवित्र जल (गंगाजल)।
उलटि उचाहैं चाँउ: उलटकर उत्साह से मांगना।
प्रेमपट: प्रेम का वस्त्र।
खोंव: कमी/दोष/धब्बा।
भावार्थ (Explanation)
(चातक पक्षी का उदाहरण) यदि वह बँधा हुआ भी है और उसे पवित्र जल भी दिया जाए, तो भी वह उसे उलटकर (तिरस्कार करके) केवल उत्साह से माँगता है। तुलसी कहते हैं कि चातक के प्रेम-पट्ट (प्रेम के कपड़े) पर मरते समय भी कोई दोष नहीं लगता।
| 11. |
तुलसी चातक सिख सुमति, सुरतिहिं बारह बार।
तात न तर्पन कीजिये, बिनु बारिधर धार॥
शब्दार्थ (Word Meanings)
सिख: सीख।
सुमति: अच्छी बुद्धि।
सुरतिहिं: याद करना।
तात: पुत्र।
तर्पन कीजिये: तृप्त करना/शांत करना।
बारिधर धार: बादल की वर्षा की धारा।
भावार्थ (Explanation)
तुलसीदास चातक को अच्छी बुद्धि की बार-बार सीख देते हैं: 'हे पुत्र! बादल की धारा के बिना (किसी अन्य जल से) तृप्त मत होना।'
| 12. |
जड़ चेतन गुन-दोष बिधि, कीन्ह करतार।
संत हंस गुन गहहिं पय, परिहरि बारि बिकार॥
शब्दार्थ (Word Meanings)
जड़ चेतन: निर्जीव और सजीव।
गुन-दोष: गुण और दोष।
बिधि: विधान/प्रकार।
करतार: कर्ता (ईश्वर)। हंस: हंस पक्षी।
गहहिं पय: दूध को ग्रहण करते हैं।
परिहरि: छोड़कर।
बारि बिकार: पानी रूपी दोष।
भावार्थ (Explanation)
ईश्वर ने जड़ (निर्जीव) और चेतन (सजीव) में गुण और दोष दोनों तरह के विधान बनाए हैं। लेकिन संत (हंस के समान) दूध और पानी में से दूध (गुण) को ग्रहण कर लेते हैं और पानी (दोष) को छोड़ देते हैं।
बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs)
1. तुलसीदास के इन दोहों का मुख्य विषय क्या है?
A. युद्ध
B. धर्म और आचरण
C. राजनीति
D. व्यापार
✔ उत्तर — B
2. दुष्ट संगति का परिणाम क्या बताया गया है?
A. ज्ञान
B. सुख
C. पतन
D. सम्मान
✔ उत्तर — C
3. संत किसके समान बताया गया है?
A. सिंह
B. हंस
C. मोर
D. मछली
✔ उत्तर — B
4. लोभ मनुष्य को—
A. बुद्धिमान बनाता है
B. अंधा कर देता है
C. धनी बनाता है
D. निर्भय बनाता है
✔ उत्तर — B
5. गुरु के बिना ज्ञान कैसा होता है?
A. प्रकाशमय
B. पूर्ण
C. अस्पष्ट और अंधकारपूर्ण
D. आनंददायक
✔ उत्तर — C
6. संत किसके गुण ग्रहण करते हैं?
A. बुराई
B. अच्छाई
C. धन
D. सम्मान
✔ उत्तर — B
7. दुष्ट व्यक्ति किस पर ध्यान देता है?
A. गुण
B. दोष
C. पवित्रता
D. विनय
✔ उत्तर — B
8. दुष्ट की मीठी बोली में क्या छिपा होता है?
A. प्रेम
B. दया
C. विष
D. ज्ञान
✔ उत्तर — C
9. मोह किसका कारण है?
A. ज्ञान
B. समझ
C. भ्रम और दुख
D. आनंद
✔ उत्तर — C
10. सच्चा मित्र कैसा होता है?
A. स्वार्थी
B. अहंकारी
C. सहायक और सच्चा
D. क्रोधित
✔ उत्तर — C
11. ‘लोभ’ का अर्थ क्या है?
A. दया
B. लालच
C. विनय
D. वैराग्य
✔ उत्तर — B
12. ‘सत्संग’ का अर्थ है—
A. धन कमाना
B. संतों का साथ
C. युद्ध का मैदान
D. व्यापार
✔ उत्तर — B
13. ‘दुष्ट’ का सही अर्थ क्या है?
A. भला व्यक्ति
B. बुरा व्यक्ति
C. साहसी व्यक्ति
D. ज्ञानी
✔ उत्तर — B
14. ‘विनय’ का अर्थ है—
A. घमंड
B. नम्रता
C. क्रोध
D. ईर्ष्या
✔ उत्तर — B
15. ‘विवेक’ का अर्थ है—
A. डर
B. सोच-समझ
C. क्रोध
D. मोह
✔ उत्तर — B
16. हंस का स्वभाव किस बात को दर्शाता है?
A. परिश्रम
B. विवेक
C. क्रोध
D. दु:ख
✔ उत्तर — B
17. दुष्ट व्यक्ति किस प्रकार का होता है?
A. दयालु
B. विनम्र
C. मीठा बोलकर नुकसान पहुँचाने वाला
D. सत्यवादी
✔ उत्तर — C
18. संत किसे त्यागते हैं?
A. सद्गुण
B. बुराई/अवगुण
C. भक्ति
D. करुणा
✔ उत्तर — B
19. गुरु-संबंधित दोहों में किसका महत्व बताया गया है?
A. शक्ति
B. धन
C. मार्गदर्शन और ज्ञान
D. कपट
✔ उत्तर — C
20. लोभ और मोह के कारण व्यक्ति—
A. स्वतंत्र
B. ज्ञानवान
C. भ्रमित
D. साहसी
✔ उत्तर — C
21. दुष्ट व्यक्ति की संगति से क्या होता है?
A. लाभ
B. पुण्य
C. हानि
D. प्रसिद्धि
✔ उत्तर — C
22. तुलसीदास किसे श्रेष्ठ मानते हैं?
A. धन
B. रूप
C. सद्गुण
D. युद्ध
✔ उत्तर — C
23. बुराई को छोड़कर अच्छाई ग्रहण करना किसका गुण है?
A. कौआ
B. चील
C. हंस
D. मोर
✔ उत्तर — C
24. कोयल किसके प्रतीक के रूप में प्रस्तुत है?
A. मधुरता
B. कठोरता
C. स्वार्थ
D. भय
✔ उत्तर — A
25. तुलसीदास ज्यादातर किस विषय पर लिखते हैं?
A. नैतिकता और भक्ति
B. राजनीति
C. विज्ञान
D. इतिहास
✔ उत्तर — A
26. निम्नलिखित में से किसका त्याग जीवन को उत्तम बनाता है?
A. सत्य
B. संयम
C. लोभ-मोह
D. दया
✔ उत्तर — C
27. संतों की संगति कैसी बताई गई है?
A. हानिकारक
B. जीवन-सुधारक
C. दुखदायी
D. व्यर्थ
✔ उत्तर — B
28. दुष्ट लोग क्या करते हैं?
A. दूसरों का भला
B. मधुर वचन बोलकर नुकसान
C. तपस्या
D. दान
✔ उत्तर — B
29. गुरु की कृपा के बिना मनुष्य—
A. ज्ञानी
B. सफल
C. भ्रमित और अंधकार में
D. धनी
✔ उत्तर — C
30. ‘कपट’ का अर्थ है—
A. छल
B. करुणा
C. प्रेम
D. दया
✔ उत्तर — A
31. राम-नाम को मणिदीप कहाँ धारण करने के लिए कहा गया है?
क) हाथ में
ख) गले में
ग) जीभ (देहरी) और हृदय (मन) में
घ) माथे पर
Ans. ग) जीभ (देहरी) और हृदय (मन) में
32. तुलसीदास ने कलियुग में किसे 'कामतरु' (कल्पवृक्ष) कहा है?
क) गुरु-पद-पंकज
ख) दान
ग) राम-नाम
घ) राम-भगति
Ans. ग) राम-नाम
33. 'सकल सुमंगल मूल जग' किसे बताया गया है?
क) राम नाम
ख) गुर पद पंकज रेनू
ग) सत्य
घ) भक्ति
Ans. ख) गुर पद पंकज रेनू
34. तुलसीदास के अनुसार संसार में अधिकांश मित्र कैसे होते हैं?
क) परमार्थी
ख) धार्मिक
ग) परोपकारी
घ) स्वार्थी
Ans. घ) स्वार्थी
35. 'बिषय-जुर-जीन' होने पर किसकी प्राप्ति नहीं हो सकती?
क) धन
ख) यश
ग) ज्ञान
घ) राम
Ans. घ) राम
36. विभीषण को बिना माँगे क्या मिला था?
क) धन
ख) लंका का राज
ग) स्वर्ग
घ) मुक्ति
Ans. ख) लंका का राज
37. राम की कृपा से साधु किए गए लोगों में कौन शामिल नहीं है?
क) केवट
ख) निसिचर (राक्षस)
ग) बिहग (पक्षी/जटायु)
घ) ब्राह्मण
Ans. घ) ब्राह्मण
38. ज्ञान, प्रकाश और निर्गुण को किसके बिना प्राप्त करना व्यर्थ है?
क) भक्ति
ख) वैराग्य
ग) गुरु
घ) राम-नाम
Ans. ग) गुरु
39. स्वाभिमानी याचक (मगनेहिं) को कौन देता है?
क) राजा
ख) धनवान
ग) संत
घ) बारिद (बादल)
Ans. घ) बारिद (बादल)
40. चातक पक्षी किस जल को छोड़कर अन्य जल से तृप्त नहीं होता?
क) गंगाजल
ख) बारिधर धार (बादल की वर्षा की धारा)
ग) नदी का जल
घ) सागर का जल
Ans. ख) बारिधर धार (बादल की वर्षा की धारा)
41. तुलसीदास ने संत को किसके समान बताया है?
क) मोर
ख) हंस
ग) बगुला
घ) कोयल
Ans. ख) हंस
42. संत हंस किस चीज़ को ग्रहण करते हैं?
क) पय (दूध/गुण)
ख) बारि (पानी/दोष)
ग) बारिद
घ) पाप
Ans. क) पय (दूध/गुण)

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