मैं नीर भरी दुख की बदली— महादेवी वर्मा Summary, Explanation, Word meanings, MCQs, Class 12 Semester 3
मैं नीर भरी दुख की बदली
— महादेवी वर्मा
Summary, Explanation, Word meanings, MCQs, Class 12 Semester 3
मैं नीर भरी दुख की बदली !
स्पन्दन में चिर निःस्पन्द बसा
क्रन्दन में आहत विश्व हँसा
नयनों में दीपक से जलते,
पलकों में निसृणी मचली !
मेरा पग-पग संगीत भरा
श्वासों से स्वप्न-पराग झरा
नभ के नव रंग बुनते दुकुल
छाया में मलय-वयार पली ।
मैं क्षितिज-भ्रुकुटि पर घिर धूमिल
चिन्ता का भार बनी अविरल,
रज-कण पर जल-कण हो बरसी,
नव जीवन-अंकुर बन निकली !
पथ को न मलिन करता आना
पद-चिह्न न दे जाता जाना
सुधि मेरे आगम की जग में
सुख की सिहरन बन अन्त खिली !
विस्तूत नभ का कोई कोना
मेरा न कभी अपना होना,
परिचय इतना, इतिहास यही-
उड़ी कल थी, मिट आज चली !
शब्दार्थ (Word Meanings)
नीर: पानी, आँसू
बदली: बादल
क्रंदन : रोना
आहत: चोट लगी हुई, दुखभरी आवाज़
निसृणी: धारा/झरना
मलय-वयार: दक्षिण दिशा की मधुर हवा
धूमिल: म्लान, फीका, उदास
रज-कण: धूल के कण
जल-कण: पानी/आँसू की छोटी बूँद
अंकुर: नया पौधा/नई शुरुआत
पद-चिह्न: पाँव का निशान
विस्मृत: भुला हुआ
परिचय: पहचान
आगम: आगमन, आना
सिहरन: कोमल तरंग, भावों का कंपना
कविता : विस्तृत सारांश (Detailed Summary)
कविता में कवयित्री स्वयं को दुख से भरी वर्षा-बदली (बादल) के रूप में प्रस्तुत करती हैं। वह कहती है कि उनका जीवन दुखों से भरा है, परंतु उसी दुख के भीतर छिपी संवेदना, करुणा और प्रेम विश्व को हँसा देता है।
उनकी आँखों में दीपक की तरह भावनाएँ जलती हैं, और पलकों में आँसुओं की धारा उमड़ पड़ती है। उनकी साँसें जैसे संगीत से भरी हैं, और जब ये साँसें चलती हैं तो ऐसा लगता है कि स्वप्न और पराग (कोमल भाव) झर रहे हों।
वे कहती हैं कि वे दुखभरी बादली हैं, जो पृथ्वी पर घिरती है और चिंता का बोझ लेकर आती है। लेकिन जब उनके आँसू (जल-कण) बरसते हैं, तो जीवन में नया अंकुर (नई आशा) फूट पड़ता है। उनका आगमन कभी भी संसार के पथ को मैलेपन से नहीं भरता, बल्कि सुख का कंपन और नई उमंग लेकर आता है।
कवयित्री कहती हैं कि आकाश का कोई कोना उनका अपना नहीं, यानी उनका जीवन निरंतर गतिशील है, कोई स्थिरता नहीं। वे कल उड़ी थीं और आज मिट गईं—यह उनका परिचय और इतिहास है। यहाँ जीवन की क्षणभंगुरता, विरक्ति, त्याग और निरंतरता की अनुभूति व्यक्त होती है।
सप्रसंग व्याख्या (पद्यांश-वार सारांश)
मैं नीर भरी दुख की बदली!
स्पन्दन में चिर निस्पन्द बसा,
क्रन्दन में आहत विश्व हँसा
नयनों में दीपक से जलते,
पलकों में निरझरिणी मचली!
भावार्थ: कवयित्री कहती हैं कि उनका जीवन दुखों से भरी हुई जल वाली बदली के समान है। उनकी धड़कन (स्पंदन) में हमेशा के लिए शांति (चिर निस्पंद) निवास करती है। उनके रोना (क्रंदन) या उनकी पीड़ा से आहत (दुखी) संसार को हँसी मिलती है (विरोध)। उनकी आँखों में दीपक के समान आँसू जलते रहते हैं, और उनकी पलकों में झरने (निरझरिणी) के समान निरंतर आँसुओं की धारा बहती रहती है।
मेरा पग-पग संगीत भरा
श्वासों से स्वप्न-पराग झरा
नभ के नव रंग बुनते दुकूल
छाया में मलय-बयार पली।
भावार्थ: कवयित्री कहती हैं कि बदली के हर कदम (पग-पग) में गड़गड़ाहट का संगीत भरा है। उनकी साँसों से स्वप्नों रूपी पराग (फूलों का रस) झरता रहता है। बदली आकाश के नए-नए रंगों से अपना वस्त्र (दुकूल) बुनती है, और उसकी छाया में चंदन के वन से आने वाली सुगंधित हवा (मलय-बयार) पलती है। इसका अर्थ है कि कवयित्री की हर क्रिया, कल्पना और जीवन-छाया में सौंदर्य और शीतलता का वास है।
मैं क्षितिज-भृकुटि पर घिर धूमिल
चिन्ता का भार बनी अविरल,
रज-कण पर जल-कण हो बरसी,
नव जीवन-अंकुर बन निकली!
भावार्थ: कवयित्री बदली के रूप में कहती हैं कि वे क्षितिज रूपी भौंहों (भृकुटि) पर घिरी हुई, धुएँ के समान धूमिल (धुंधली) हैं। वे निरंतर (अविरल) चिंता का भार बनी रहती हैं। बदली जब धूल के कणों (रज-कण) पर जल के कण (जल-कण) के रूप में बरसती है, तो वही धूल का कण नए जीवन के अंकुर (बीज) बनकर फूट निकलता है। अर्थात्, कवयित्री के दुःखों की वर्षा भी संसार के लिए कल्याणकारी और नव-जीवन का कारण बनती है।
पथ को न मलिन करता आना
पद-चिह्न न दे जाता जाना
सुधि मेरे आगम की जग में
सुख की सिहरन बन अन्त खिली!
भावार्थ: कवयित्री कहती हैं कि बदली का आना रास्ते को गंदा (मलिन) नहीं करता और जाते समय वह कोई पद-चिह्न (पैरों का निशान) भी नहीं छोड़ती। वह मौन और निस्वार्थ भाव से आती-जाती है। संसार में उसके आने की याद (सुधि मेरे आगम की) अंत में सुख की सिहरन (खुशी की कंपकंपी) बनकर खिलती है।
विस्तृत नभ का कोई कोना
मेरा न कभी अपना होना,
परिचय इतना, इतिहास यही-
उमड़ी कल थी, मिट आज चली!
भावार्थ: कवयित्री कहती हैं कि इस विस्तृत आकाश (विस्तृत नभ) का कोई भी कोना उनका स्थायी घर (अपना होना) नहीं है। वे क्षणभंगुर और अस्थिर हैं। उनका परिचय (पहचान) और इतिहास (अतीत) बस इतना ही है कि वे कल उमड़ी (पैदा हुईं/आईं) थीं और आज मिटने (समाप्त होने) के लिए चली हैं। यह मानव जीवन की नश्वरता और क्षणिकता को दर्शाता है।
1. “मैं नीर भरी दुख की बदली” की कवयित्री कौन हैं?
a) सुभद्रा कुमारी चौहान
b) महादेवी वर्मा
c) माखनलाल चतुर्वेदी
d) मैथिलीशरण गुप्त
✔ उत्तर: b)
2. महादेवी वर्मा किस कविता–आंदोलन से जुड़ी हैं?
a) छायावाद
b) रीतिकाल
c) बीज मंत्र कविता
d) भक्तिकाल
✔ उत्तर: a)
3. महादेवी वर्मा को किस नाम से जाना जाता है?
a) आधुनिक मीरा
b) वैकल्पिक सूरदास
c) कोमल कविता की रानी
d) महाकाव्य सम्राज्ञी
✔ उत्तर: a)
4. “नीर” का अर्थ है—
a) बादल
b) पानी / आँसू
c) हवा
d) धुआँ
✔ उत्तर: b)
5. कवयित्री स्वयं को किस रूप में प्रस्तुत करती हैं?
a) सूर्य
b) चाँद
c) दुख की बदली
d) पर्वत
✔ उत्तर: c)
6. बदली बनने का संकेत है—
a) उदासी
b) निस्वार्थ प्रेम
c) करुणा और त्याग
d) उपरोक्त सभी
✔ उत्तर: d)
7. “स्पंदन में चिर निःस्पन्द बसा”— यहाँ “चिर निःस्पन्द” का अर्थ है—
a) स्थायी शांति
b) सदा गति
c) गुस्सा
d) चमक
✔ उत्तर: a)
8. “क्रंदन में आहत विश्व हँसा”— कविता में विरोधाभास किसमें है?
a) रोने में हँसना
b) चलने में रुकना
c) अंधेरे में रोशनी
d) हवा की धीमी चाल
✔ उत्तर: a)
9. “नयनों में दीपक से जलते”— दीपक किसका प्रतीक है?
a) आशा
b) विवेक
c) भावनाओं की गरिमा
d) सभी
✔ उत्तर: d)
10. “पलकों में निसृणी मचली”— अर्थ है—
a) आँधी चलना
b) आँसू बहना
c) अंधेरा होना
d) धूप खिलना
✔ उत्तर: b)
11. बदली के आँसुओं से क्या फलित होता है?
a) दुख बढ़ता है
b) नई उमंग आती है
c) रास्ता नष्ट होता है
d) आकाश काला होता है
✔ उत्तर: b)
12. “नव जीवन अंकुर बन निकली”— यह किसका प्रतीक है?
a) नई शुरुआत
b) निराशा
c) अज्ञान
d) वैराग्य
✔ उत्तर: a)
13. कवयित्री का आगमन कैसा है?
a) विनाशकारी
b) रास्ता मैला करने वाला
c) सौम्य और सुखद
d) डरावना
✔ उत्तर: c)
14. ‘आहत’ का अर्थ है—
a) प्रसन्न
b) घायल, दुखी
c) चंचल
d) स्थिर
✔ उत्तर: b)
15. ‘मलय-वयार’ किसे कहते हैं?
a) समुद्री तूफान
b) दक्षिण की शीतल हवा
c) रेगिस्तान की गर्म हवा
d) हिमालय की बर्फीली हवा
✔ उत्तर: b)
16. ‘विस्तूत’ का सही अर्थ है—
a) भुला हुआ
b) तंग
c) चौड़ा/विस्तृत
d) बड़ा
✔ उत्तर: c)
17. ‘रज-कण’ का अर्थ है—
a) वर्षा की बूँद
b) धूल के कण
c) बादल के कण
d) अंगार
✔ उत्तर: b)
18. ‘अविरल’ का अर्थ है—
a) रुक-रुक कर
b) लगातार
c) तेज़
d) कम
✔ उत्तर: b)
19. कविता का मुख्य भाव क्या है?
a) प्रकृति का सौंदर्य
b) दुख में छिपी कोमल संवेदना
c) युद्ध और वीरता
d) मनोरंजन
✔ उत्तर: b)
20. कवयित्री के लिए जीवन—
a) दुख का बोझ
b) निरंतर गतिशीलता और करुणा
c) नीरस
d) चंचल
✔ उत्तर: b)
21. कवयित्री कहती हैं कि आकाश का कोई कोना उनका अपना नहीं क्योंकि—
a) वे उड़ नहीं सकती
b) वे मुक्त, अनिश्चित और गतिशील हैं
c) उनका मार्ग नष्ट है
d) बादल बड़ा है
✔ उत्तर: b)
22. “मैं नीर भरी दुख की बदली”— इसमें कौन-सा अलंकार है?
a) रूपक
b) उपमा
c) अनुप्रास
d) उत्प्रेक्षा
✔ उत्तर: a) (रूपक: कवयित्री = बदली)
23. “नयनों में दीपक से जलते”— अलंकार?
a) उपमा
b) रूपक
c) अनुप्रास
d) मानवीकरण
✔ उत्तर: a) (उपमा)
24. “सुख की सिहरन”— अलंकार?
a) मानवीकरण
b) उत्प्रेक्षा
c) रूपक
d) उपमा
✔ उत्तर: a)
25. “पलकों में निसृणी मचली”— अलंकार?
a) रूपक
b) मानवीकरण
c) उपमा
d) अनुप्रास
✔ उत्तर: b)
26. कवयित्री के आँसू—
a) व्यर्थ हैं
b) नष्ट कर देते हैं
c) धरती को उपजाऊ बनाते हैं
d) कोई प्रभाव नहीं
✔ उत्तर: c)
27. कवयित्री अपने अस्तित्व को—
a) स्थिर
b) क्षणभंगुर
c) भारी
d) अदृश्य
✔ उत्तर: b)
28. “उड़ी कल थी, मिट आज चली”— कविता में किस तत्व को दर्शाता है?
a) आशा
b) प्रेम
c) जीवन की अस्थिरता
d) शक्ति
✔ उत्तर: c)
29. कवयित्री दुख को—
a) बोझ मानती हैं
b) जीवन का सौंदर्य मानती हैं
c) दूर करना चाहती हैं
d) छुपाना चाहती हैं
✔ उत्तर: b)
30. कविता में दुःख का चित्रण—
a) करुण
b) शक्तिशाली
c) जीवनदायी
d) उपरोक्त सभी
✔ उत्तर: d)
31. “पद-चिह्न न दे जाता जाना”— कवयित्री दर्शाती हैं—
a) पहचान छोड़ना
b) कोई चिन्ह न छोड़ना
c) विनाश करना
d) रास्ता बदलना
✔ उत्तर: b)
32. “सुख की सिहरन बन अन्त खिली”— यहाँ “खिली” का अर्थ है—
a) रोई
b) मुस्कुराई / फली-फूली
c) टूट गई
d) सो गई
✔ उत्तर: b)
33. “मेरा न कभी अपना होना”— अर्थ है—
a) कवयित्री अकेली हैं
b) वे किसी से बंधना नहीं चाहतीं
c) दुनिया उन्हें स्वीकारती नहीं
d) वे स्वतंत्र बादल की तरह हैं
✔ उत्तर: d)
34. कवयित्री बार-बार ‘जल-कण’ का उल्लेख करती हैं— इसका संकेत है कि वे—
a) संवेदनशील हैं
b) कठोर हैं
c) उदासीन हैं
d) हास्यप्रिय हैं
✔ उत्तर: a)
35. कविता का स्वर (Tone) कैसा है?
a) उत्सवपूर्ण
b) करुण–कोमल
c) उग्र
d) तेज़
✔ उत्तर: b)
36. महादेवी वर्मा किस विषय की कवयित्री मानी जाती हैं?
a) वीर रस
b) श्रृंगार रस
c) करुणा की कविताएँ
d) हास्य
✔ उत्तर: c)
37. कविता में कौन-सा रस प्रमुख है?
a) वीर
b) करुण
c) हास्य
d) रौद्र
✔ उत्तर: b)
38. कवयित्री दुख को किस रूप में स्वीकार करती हैं?
a) भाग्य
b) जीवन का सौंदर्य
c) कमजोरी
d) शक्ति
✔ उत्तर: b)
39. कविता में ‘बदली’ किसका प्रतीक है?
a) दुख और संवेदना
b) गर्व
c) कठोरता
d) मनोरंजन
✔ उत्तर: a)
40. पूरी कविता में कवयित्री किसके समान घूमती रहती है?
a) पतंग
b) पक्षी
c) बादल
d) नदी
✔ उत्तर: c)

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